मैं क्षितिज भृकुटि पर घिर धूमिल, चिंता का भार बनी अविरल, रज-कण पर जल-कण हो बरसी, नव जीवन-अंकुर बन निकली!पथ न मलिन करता आना, पद चिह्न न दे जाता जाना, सुधि मेरे आगम की जग में, सुख की सिहरन हो अंत खिली!विस्तृत नभ का कोई कोना, मेरा न कभी अपना होना, परिचय इतना इतिहास यही, उमड़ी कल थी मिट आज चली | काव्य का भावार्थ कीजिए
Answers
Answered by
52
यह कविता महादेवी वर्मा की है जिसमें उन्होंने इस कविता में एक लड़की की जिंदगी के सफर के बारे में बताया है.
लड़की के जीवन की डोर ओरों क हाथों में सोंप दी जाती है , पैदा होते ही लोग दुखी हो जाते है और लड़के की दुआ करते है, शादी के दहेज़ की चिंता होती माँ-बाप को डर, ज्यादा पढ़ लिख गई तो डर, पति ना रहे तो डर, लड़की की ज़िन्दगी में परेशानियां चली रहती है. लड़की कहती है यही इतिहास चला आ रहा ना मेरा कोई है, ना मेरा कोई अपना होगा, ना कभी परिचय होगा और ऐसा ही एक दिन मिट जाना है.
mishra86:
बहुत सुंदर
Similar questions