Hindi, asked by kumarravic1983, 11 months ago

मैं क्षितिज भृकुटि पर घिर धूमिल, चिंता का भार बनी अविरल, रज-कण पर जल-कण हो बरसी, नव जीवन-अंकुर बन निकली!पथ न मलिन करता आना, पद चिह्न न दे जाता जाना, सुधि मेरे आगम की जग में, सुख की सिहरन हो अंत खिली!विस्तृत नभ का कोई कोना, मेरा न कभी अपना होना, परिचय इतना इतिहास यही, उमड़ी कल थी मिट आज चली | काव्य का भावार्थ कीजिए

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Answered by bhatiamona
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यह कविता महादेवी वर्मा की है जिसमें उन्होंने इस कविता में एक लड़की की जिंदगी के सफर के बारे में बताया है.

लड़की के जीवन की डोर ओरों क हाथों में सोंप दी जाती है , पैदा होते ही लोग दुखी हो जाते है और लड़के की दुआ करते है, शादी के दहेज़ की चिंता होती माँ-बाप को डर, ज्यादा पढ़ लिख गई तो डर, पति ना रहे तो डर, लड़की की ज़िन्दगी में परेशानियां चली रहती है. लड़की कहती है यही इतिहास चला आ रहा ना मेरा कोई है, ना मेरा कोई अपना होगा, ना कभी परिचय होगा और ऐसा ही एक दिन मिट जाना है.


mishra86: बहुत सुंदर
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