'मुक्ति की मिसरी घुली हुई है' से क्या तात्पर्य है?
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मुक्ति कर्म के बन्धन से मोक्ष पाने की स्थिति है। यह स्थिति जीवन में ही प्राप्त हो सकती है। मुक्ति निम्न चार प्रकार की होती हैं:
सालोक्य - जीव भगवान के साथ उनके लोक में ही वास करता हैं।
सामीप्य- जीव भगवान के सन्निध्य में रहते कामनाएं भोगता हैं।
सारूप्य - जीव भगवान के साम्य (जैसे चतुर्भुज) रूप लिए इच्छाएं अनुभूत करता हैं।
सायुज्य - भक्त भगवान मे लीन होकर आनंद की अनुभूति करता हैं।
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