मुक्ति संघर्ष क्या है?
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श्रीकृष्ण-कथा पर आधारित 5 खण्डों में यह एक ऐसी उपन्यास-माला है, जो पाठकों का भरपूर मनोरंजन तो करती ही है, साथ ही सभी को श्रृद्धा के भाव जगत में ले जाकर खड़ा कर देती है।
इन सभी उपन्यासों में लेखक ने श्रीकृष्ण के जीवन में आए तमाम लोगों का सजीव मानवीय चित्रण किया है तथा अनेक नए चौंकाने वाले तथ्य भी खोजे हैं। इस गाथा में श्रीकृष्ण का जीवंत चरित्र उद्घाटित होता है।
इस श्रृंखला के प्रत्येक खण्ड में 2 उपन्यास दिए गए हैं, जो समूची जीवन-कथा के 10 महत्वपूर्ण पड़ावों को मार्मिक ढंग से रेखांकित करते हैं।
पांचवें खण्ड ‘कालयवन’ में गर्ग ऋषि और गोपाली अप्सरा से जन्मे तथा कालनेमि द्वारा संरक्षित महाबलशाली कालयवन की यह कथा उस ओर संकेत करती है, जहां वह आर्य रक्त होते हुए भी आर्यों के विरुद्घ उठ खड़ा होता है, जबकि छठे खण्ड ‘जनाधार’ में जरासंध के क्रूर आक्रमण से बचाने के लिए श्रीकृष्ण का जनाधारित रणकौशल और यादवों को संगठित करने की रोमांचक कथा का वर्णन है।
कालयवन
दिन-रात का हर प्रहर एक प्रश्न बन गया है, फिर प्रश्नों की एक श्रृंखला। एक ही बार में कितने प्रश्न जनम आए हैं। एक घटना और असंख्य प्रश्न !
कंसवध कुछ-कुछ ऐसी ही घटना है। उद्धव ही नहीं, सभी समझे थे कि एक क्रूर कष्टदायी अध्याय का संघीय जीवन से अन्त हुआ, पर लगता है कि भूल हुई। इस अंत ने कितने ही अंतहीन प्रश्नों का एक समुद्र बिछा दिया है समूचे जनपद क्षेत्र में। भोर होती है, तो आशंका की उदासियों से भरी हुई, दोपहर का सन्नाटा रहस्य की अजानी भूलभुलैयों का अदृश्य जाल और रात का अंधकार रहस्य की आशंकापूर्ण अंधगुफा !
कृष्ण हों या बलभद्र, वसुदेव हों या देवकी, महाराज उग्रसेन हों या श्वफलक सभी एक साथ यही कुछ झेल रहे हैं। दूर-सुदूर जनपद में असंख्य चर्चाएं बिखरी हुई हैं। आगत भय की नाश कल्पना ने जन-मानस को उन अंकुरों की तरह कर दिया है, जो जनमते हैं, पर रुग्ण ! मृत्यु का निश्चित भवितव्य चेहरों पर लिखे हुए।
उद्धव भी यही कुछ अनुभव करते हैं, जैसे-जैसे अनुभव करते हैं, अशांत होते जाते हैं। यह अशांति अनेक बार व्यग्रता में चिढ़ और खीझ बन गई है। कभी-कभी उत्तेजित, असंबद्घ बातें भी कर बैठते हैं।
न सुनने वाला आश्चर्य व्यक्त करता है, न कहने वाला। जब सभी एक ज्वालामुखी के मुख पर बैठे हुए हों, तो भला किसे इस सब पर विचारने का अवसर होगा !... और ज्वालामुखी, मगधराज जरासन्ध ! विचारों की क्रूरता और राजशक्ति के घातक दंभ का अनोखा सम्मिश्रण। लगता है कि मृत्यु और नाश के बीच विचित्र-सा समझौता हुआ है। इस समझौते का लक्ष्य मथुरा का यादव गणसंघ।
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