माँ का वात्सल्य। पै कहानी
Answers
Explanation:
स्ूरदास जी कृष्णभक्त कवियों में सर्वोपरि स्थान रखते हैं। इन्होनें श्रीकृष्ण के बालरूप का ऐसा मनोहर रूप अंकित किया है कि देखते ही बनता है साथ ही श्रीकृष्ण के बाल्यकाल की एक-एक छवि, को ऐसे वर्णित किया है कि सम्पूर्ण दृष्य पाठको के समक्ष सजीव हो उठता है। कहते है कि उन्हें माता यषोदा का हृदय प्राप्त था, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने भी लिखा है कि ‘‘सूर अपनी बंद आँखो से वात्सल्य का कोना-कोना झाँक आए है।’’ सूरदास जी की वात्सल्य रचना का कोई जोड़ नही है।
वात्सल्य, माता यषोदा, श्रीकृष्ण, कृष्णभक्त, बालरूप
सूरदास जी का नाम कृष्णभक्ति की अजस्त्र धारा को प्रवाहित करने वाले श्क्त कवियों में सर्वोपरि है। श्गवान श्रीकृष्ण के अनन्य उपासक और ब्रजभाषा के श्रेष्ठ कवि महात्मा सूरदास हिन्दी साहित्य में अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान रखते है। इन्होने हिन्दी कविता को समृद्ध करने में जो योगदान दिया है, वह अद्वितिय है। सूर ने वात्सल्य, श्रृंगार, और शांत रसो को अपनाया है।
सूर ने अपनी प्रतिभा और कल्पना के सहारे कृष्ण के बाल रूप का अति सुंदर, सरस, सजीव और मनोवैज्ञानिक वर्णन किया है। बालको की चपलता, स्पर्धा, अभिलाषा, आकंक्षा का वर्णन करने में सूर ने अपनी कल्पना और कुषल लेखनी का परिचय दिया है। बालक कृष्ण की एक-एक चेष्टाओं के चित्रण में कवि की कमाल की सूक्ष्म निरिक्षण की दृष्टि एवं होषियारी देखने को मिलती है।
सूर ने अपनी कविता का विषय जीवन के विविध क्षेत्रों तक विस्तृत न करके वात्सल्य और श्रृंगार तक ही सीमित रखा। सूरदास का वात्सल्य वर्णन हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि है। रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा हैः-‘‘ बाल सौन्दर्य एवं स्वभाव के चित्रण में जितनी सफलता सूर को मिली है, उतनी अन्य किसी को नहीं। वे अपनी बन्द आँखो से वात्सल्य का कोना-कोना झांक आए हैं।’’
सूरदास के वात्सल्य वर्णन में स्वाभाविकता, विविधता, रमणीयता एवं मार्मिकता है, जिसके कारण ये वर्णन अत्यन्त हृदयग्राही एवं मर्मस्पर्षी बन पड़े है। सूरदास जी के अनेक पद एक दूसरे से लताओं व वृक्षों की शंति गुंथे मिलते है। यषोदा के बहाने सूरदास जी ने मातृहृदय का ऐसा स्वाभाविक सरल और मनमोहक चित्र खींचा है जो अनुपम है, कभी-कभी तो ऐसा प्रतीत होता है कि सूरदास जी माता यषोदा का रूप लेकर बालकृष्ण की लीलाओं को स्वयं अपनी नेत्रो से देख रहें हों। किसी ने सत्य ही कहा है कि सूर को माता यषोदा का हृदय प्राप्त था।
सूरदास जी ने वात्सल्य के दोनो पक्षों संयोग और वियोग का अत्यंत ही सजीव चित्रण किया है। वात्सल्य के संयोग पक्ष में उन्होने एक ओर तो बालक कृष्ण की रूप माधुरी का चित्रण किया है तो दूसरी ओर बालोचित चेष्टाओं का मनोहारी वर्णन किया है, यथाः-
‘‘ हरिजू की बाल छवि कहौं बरनि।
सकल सुख की सींव कोटि मनोज सोभा हरनि।।’’
सूरदास के वात्सल्य प्रेम में गाए गए गीत किसी श्ी माँ के अपने पुत्र के प्रति वात्सल्य का प्रतिनिधित्व करते हैै, माता यषोदा श्ी श्रीकृष्ण को पालने में सुलाकर लोरी गाती हैः-
‘‘ जसोदा हरि पालने झुलावे,
हलरावे दुलराई मल्हावे, जोई सोई कछु गावे।
मेरे लाल को आउ निंदरिया, काहै न आनि सुवावे,
तू काहे नहिं बेगहि आवै, तोको कान्ह बुलावैं।।’’
माँ की लोरी सुनकर कृष्ण कभी अपनी पलकों को मूँद लेते है तो कभी अपने होठों को फड़काते हैः-
‘‘कबहूँ पलक हरि मूँद लेत है, कबहूँ अधर फरकावैं।’’
कृष्ण के शैषव, बाल किषोर और यौवन सभी अवस्थाओं का चित्रण सूर ने विलक्षण सौन्दर्यानुभूति के साथ किया है। मुख पर मक्खन लपेटे, घुटनियों के बल चलते हुए कृष्ण की सुकुमारता का मुग्ध कर लेने वाला चित्रण श्ी सूर ने किया है।
डाॅ. रामकुमार वर्मा ने कहा है किः-
‘‘ सूरदास ने षिषु और बाल-जीवन की प्रत्येक शवना का इतना गम्भीर अध्ययन किया है कि वे प्रत्येक परिस्थिति के चित्र बड़ी कुषलता और स्वाभाविकता से उतार सकते है। उन्होने कृष्ण और माँ यषोदा के हृदयों की शवना को इतने सार्वजनिक रूप से प्रस्तुत किया है कि वे चिरन्तन और सत्य है।’’
बालक कृष्ण को देखकर माँ यषोदा सोचती हैः-
‘‘जसुमति मन अभिलाष करै,
कब मेरे लाल घुटुरूवनि रेगें,कब धरनी पग द्वैक धरे,
कब द्वै दाँत दूध के देखो, कब तोतरे मुख वचन झरे।’’
माता की इच्छा श्ी शीघ्र ही पूर्ण हो जाती हैः-
‘‘किलकत कान्ह घुटुरूवनि आवत
मनिमय कनक नन्द के आंगन बिम्ब पकरिवे धावत।’’
सूर ने कृष्ण की बाल-लीलाओं का ऐसा चित्ताकर्षक एवं मनोहारी चित्र अकिंत किया है कि देखते ही बनता है। कृष्ण घुटनो के बल चलने लगे है, उनके हाथों में मक्ख्न और मुख पर दही लगा हुआ है, पूरा शरीर मिट्टी से सना है, मस्तक पर गोरोचन का तिलक है और उनके घुंघराले बाल गालो पर बिखरे है, गले में बघनखे का कंठुला शोभायमान है। कृष्ण के इस सौन्दर्य को एक क्षण के लिए देखने श्र का सुख श्ी सात युगों तक जीने के समान हैः-
‘‘ सोभित कर नवनीत लिये।
माँ की वात्सल्य |
Explanation:
पूरे विश्व में अगर कोई हमें सच्चा प्यार करता हैं तो वह एक माँ ही हैं जिसने हमें इस दुनिया में लाया हैं |सबके ऊपर हम हमारे माँ को देखते हैं और देखना भी चाहिए क्योंकि उसकी वात्सल्य ही है जो की हमें इस क्रूर दुनिया में अब ताल पाल पोष कर बड़ा किया हैं |
माँ का प्यार और उसका आनन-फानन उसके शिशु के लिए एक वरदान ही हैं जो की बहुत ही दुर्लभ हैं | चाहे आपको पता न चले परंतु माँ की हर एक डांट में भी अपने शिशु के लिए प्रेम छुपी हुई होती हैं | उसका वात्सल्य उसके आँखों से हमेशा ही झलकती रहती हैं |