"मैं कगारे पर का वृक्ष हो गया हूँ, न मालूम कब गिर पडूँ " - यह कथन किसका है
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यह कथन बंसीधर के पिताजी ने कहा हे जब वह बंसीधर को कुछ काम करने कि सलाह से रहे होते हे तब । क्योंकि वह अब बहुत ब्रुध हो गए थे और वह कमा ना पाने के कारण यह कथन बंसीधर से कहे रहे थे।
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"मैं कगारे पर का वृक्ष हो गया हूँ, न मालूम कब गिर पडूँ " - यह कथन वंशीधर का है ।
- नमक का दारोगा पाठ का मुख्य व प्रभावशाली पात्र है वंशीधर । वह घर की परिस्थिति से अवगत कराते हुए अपने पुत्र से अपनी जिम्मेदारियां संभालने के लिए कह रहे हैं।
- वंशीधर पुत्र से कहते है कि " पुत्र अभी मै बूढ़ा हो चला हूं। न जाने कब इस संसार से विदा ले लूं? ऋण के बोझ से दबा हुआ हूं। लड़कियां बड़ी हो रही है। अब तुम्हीं घर के रखवाले हो। नौकरी में ओहदे को मत देखना। यह पीर की
मजार की तरह है।
- तुम ऐसा काम करना जिसमें ऊपरी कमाई हो। मासिक तनख्वाह पूर्णिमा का चांद होता है जो महीने केवल एक बार दिखाई देता है व घट घट कर गुम हो जाता है। ऊपरी आमदनी बहता हुआ झरना है जो हमेशा प्यास बुझाता है।
- जिस इंसान को गरज हो उसके साथ कठोरता दिखाना। जिसे गरज न हो उस पर समय गंवाना व्यर्थ है।"
- अंत में वे समझाते है कि यदि तुम रिश्वत नहीं लोगे तो तुम्हारा पढ़ना लिखना व्यर्थ है।
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