Hindi, asked by ankit77780, 9 months ago

माखी गुड़ में गड़ि रही, पंख रह्यो लपटाय।
हाथ मलै और सिर धुने, लालच बुरी बलाय॥७॥
कवीर

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Answers

Answered by saifmansuri016
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Explanation:

माखी गुड में गडी रहे, पंख रहे लिपटाए ।

हाथ मेल और सर धुनें, लालच बुरी बलाय ।

भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि मक्खी पहले तो गुड़ से लिपटी रहती है। अपने सारे पंख और मुंह गुड़ से चिपका लेती है लेकिन जब उड़ने प्रयास करती है तो उड़ नहीं पाती तब उसे अफ़सोस होता है। ठीक वैसे ही इंसान भी सांसारिक सुखों में लिपटा रहता है और अंत समय में अफ़सोस होता है।

Answered by ZNKPmore123
1

Explanation:

my answer is right

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