मौखिक कथन और श्रवण परंपरा किसे कहते हैं?
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श्रवण कौशल का अर्थ बच्चों में ऐसी क्षमता का विकास करने से है जिससे कि बच्चा किसी कथन को ध्यान से सुनकर उसका सही अर्थ समझ सके ।सुनी हुई बात पर चिंतन एवम् मनन कर सके और उचित निर्णय ले सकें। फिनलैंड के लोगों ने मौखिक शब्दों को लिखित अक्षरों का रूप दिया ।
सुनने और बोलने को अलग अलग करके देखने की कल्पना भी नहीं की जा सकती ।सुनना और बोलना एक दूसरे पर निर्भर होते हैं ।बच्चे की भाषा का अधिकतर भाग उसके श्रवण कौशल की देन होता है ।
मौखिक कौशल द्वारा वह भाषा का अभ्यास और पुनः रचना करता है ।श्रवण कौशल तभी कार्य करता है जब कोई वाचन कौशल का उपयोग कर रहा हो ।जब कोई स्वयं भी बोल रहा हो तो भो श्रवण कौशल साथ साथ चलता रहता है ।बोलने और सुनने के इस अन्तर्सम्बन्ध को हम घर स्कूल मोहल्ले आदि किसी भी स्थान पर देख सकते हैं ।घर पर ,विशेष रूप से संयुक्त परिवारों में ,सुनने और बोलने के भरपूर अवसर बच्चों को मिलते हैं । वे आदेश ,निर्देश,अनुरोध ,सलाह आदि को सुनकर उनके अनुसार कार्य करते हैं । वे प्रश्नो के उत्तर देते हैं ,तथा दूसरों को अपने विचार ,इच्छाएँ और डर बताते हैं ।
*मौखिक कथन और श्रवण की इस परंपरा से ही हमारी श्रुतियाँ और स्मृतियाँ प्राचीन ज्ञान को हम तक पहुँचाने में सफल रही हैं।