मेखलाकार पर्वत अपार, अपने सहस्र दृग सुमन-
फाड़, अवलोक रहा था बार-बार, नीचे जल में
निजमहाकार ॥ (दो अलंकार छाँटिए)
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मानवीकरण
पुनः रुपित
these are the alankars
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