मेखलाकार पर्वत अपार, अपने सहस दृग सुमन-
फाड़, अवलोक रहा था बार-बार, नाचे जल में
निजमहाकार॥ (दो अलंकार छाँटिए)
क. रूपक-मानवीकरण
ख. उत्प्रेक्षा-मानवीकरण
घ. श्लेष-यमक
ग. उपमा-रूपक
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