Psychology, asked by danginandkishor9, 2 months ago

मूल अधिकारों की निर्माण प्रक्रिया को संविधान सभा में सर्वाधिक प्रभावित करने वाला व्यक्ति कौन थे​

Answers

Answered by barikashutosh248
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Explanation:

स्वतंत्रता का दिन आने से पहले ही भारत के संविधान का निर्माण का काम शुरू हो गया था. 16 मई 1946 को कैबिनेट मिशन के माध्यम से जो योजना स्वीकार की गई, उसमें मौलिक अधिकारों, अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा, कबाइली और पृथक क्षेत्रों की प्रशासन व्यवस्था, संघ व्यवस्था, प्रांतीय व्यवस्था का खाका बनाने के लिए एक परामर्श समिति बनाने की बात कही गई थी

Answered by progyankonwar08
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Final Answer:

इस पर डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने 17 दिसंबर 1946 को कहा था कि 'प्रस्ताव में उल्लिखित मौलिक अधिकारों को भी क़ानून और सदाचार के अधीन रख दिया गया है, निश्चय ही क़ानून और सदाचार क्या हैं, इस बात का निर्णय जमाने का शासन प्रबंध (कार्यपालिका) करेगा, किसी प्रबंध का एक फैसला हो सकता है और दूसरे का दूसरा.

Explanation:

  • मूल अधिकार, राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व और मूल कर्तव्य भारत के संविधान के अनुच्छेद हैं जिनमें अपने नागरिकों के प्रति राज्य के दायित्वों और राज्य के प्रति नागरिकों के कर्तव्यों का वर्णन किया गया है। इन अनुच्छेदों में सरकार के द्वारा नीति-निर्माण तथा नागरिकों के आचार एवं व्यवहार के संबंध में एक संवैधानिक अधिकार विधेयक शामिल है। ये अनुच्छेद संविधान के आवश्यक तत्व माने जाते हैं, जिसे भारतीय संविधान सभा द्वारा 1947 से 1949 के बीच विकसित किया गया था।
  • मूल अधिकारों को सभी नागरिकों के बुनियादी मानव अधिकार के रूप में परिभाषित किया गया है। संविधान के भाग III में परिभाषित ये अधिकार नस्ल, जन्म स्थान, जाति, पंथ या लिंग के भेद के बिना सभी पर लागू होते हैं। ये विशिष्ट प्रतिबंधों के अधीन अदालतों द्वारा प्रवर्तनीय हैं।
  • राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत सरकार द्वारा कानून बनाने के लिए दिशानिदेश हैं। संविधान के भाग IV में वर्णित ये प्रावधान अदालतों द्वारा प्रवर्तनीय नहीं हैं, लेकिन जिन सिद्धांतों पर ये आधारित हैं, वे शासन के लिए मौलिक दिशानिदेश हैं जिनको राज्य द्वारा कानून तैयार करने और पारित करने में लागू करने की आशा की जाती है।
  • मौलिक कर्तव्यों को देशभक्ति की भावना को बढ़ावा देने तथा भारत की एकता को बनाए रखने के लिए भारत के सभी नागरिकों के नैतिक दायित्वों के रूप में परिभाषित किया गया है। संविधान के चतुर्थ भाग में वर्णित ये कर्तव्य व्यक्तियों और राष्ट्र से संबंधित हैं। निदेशक सिद्धांतों की तरह, इन्हें कानूनी रूप से लागू नहीं किया जा सकता।

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