माला फेरत जुग भया फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डारि दे मन का मनका फेर।।
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संत कबीरदास जी कहते हैं कि कोई व्यक्ति लम्बे समय तक हाथ में लेकर मोती की माला तो घुमाता है, पर उसके मन का भाव नहीं बदलता, उसके मन की हलचल शांत नहीं होती. कबीर की ऐसे व्यक्ति को सलाह है कि हाथ की इस माला को फेरना छोड़ कर मन के मोतियों को बदलो या फेरो.
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इस आंसर से आप सहमत है तो मुझे फॉलो करना बाय ok bte
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