माला फेरत जुग गया गया न मन का फेर कर का मनका डारि दे मन का मनका फेर में कौन सा रस है
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Answer:
इसमे हैं भक्ति रस
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माला फेरत जुग गया गया न मन का फेर कर का मनका डारि दे मन का मनका फेर में कौन सा रस है?
माला फेरत जुग भया, गया न मन का फेर ।
कर का मनका डारि कै , मन का मनका फेर।।
प्रश्न में दी गई पंक्ति में शांत रस है |
व्याख्या :
शांत रस : जब मनुष्य के मन में आनंद का अभाव हो, उसे रस कहते हैं और जब मनुष्य का पूरा ध्यान आध्यात्मिकता की ओर लग जाता है और दुनिया के प्रति वैराग्य का भाव उत्पन्न हो जाता है और उसके मन को शान्ति प्राप्त होती है, तो वहाँ पर शांत रस प्रकट होता है।
दोहे का अर्थ इस प्रकार है, यदि कोई मनुष्य लम्बे समय तक हाथों में मोती की माला को घुमाता है, तो उससे मन का भाव नहीं मिलता, उसके मन में कोई शांति नहीं होती है। कबीर जी कहते है, हाथों से माला फेरना बंद करो, अपने मन की मोतियों को बदलो|
#SPJ3
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कुछ और जानें :
मैं तो गिरधर के संग जाऊँ
गिरधर मेरो सांचों प्रीतम
देखत रूप लुभाऊँ।
कौन सा रस है?
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अर्थ राति गइ कपि नहिं आयउ। राम उठाय अनुज उर लायउ।।
सकहु न दुखित देखि मोहिं काऊ। बन्धु सदा तव मृदुल सुभाऊ।।
जौ जनतेऊँ बन बंधु बिछोहू। पिता बचन मनतेऊँ नहिं ओहू।।
उपर्युक्त पंक्तियों में कौन-सा रस है?
(i) अद्भुत
(ii) करुण
(iii) वीर
(iv) शान्त
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