Science, asked by sunderisnhg1244151, 3 months ago

मौलिक अधीकारो का उल्लंघन
नहोने की स्थिति में किस मौलिक
अधिकार के अंतर्गत उनकी रक्षा
की गई​

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Answered by tulsiyadav5732
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Answer:

article 32 ke antragat molin adhikaro k ullangano ki raksha ki gyi h

Answered by payalgpawar15
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मौलिक अधिकारों के हनन का मामला उनके सामने लाया जाता है तो वह उस पर कार्रवाई करेगी.

संविधान पीठ ने ये टिप्पणियां उस वक्त कीं जब कुछ गिरिजाघरों और उत्कल क्रिश्चियन एसोसिएशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मनोज जॉर्ज ने कहा कि धारा 377 में संशोधन करने या इसे बरकरार रखने के बारे में फैसला करना विधायिका का काम है.

इस पर पीठ ने कहा, ‘अगर हमें लगता है कि मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है, तो ये मौलिक अधिकार अदालत को अधिकार देते हैं कि ऐसे कानून को निरस्त किया जाए.’ मनोज जॉर्ज ने ‘लैंगिक रूझान’ शब्द का भी हवाला दिया और कहा कि नागरिकों के समता के अधिकार से संबंधित संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 में प्रयुक्त ‘सेक्स’ शब्द को ‘लैंगिक रूझान’ के रूप में नहीं पढ़ा जा सकता है.

उन्होंने दलील दी कि लैंगिक रूझान सेक्स शब्द से भिन्न है क्योंकि एलजीबीटीक्यू से इतर भी अनेक तरह के लैंगिक रूझान हैं. लाइव लॉ वेबसाइट के अनुसार इस पर मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा, ‘अगर अनुच्छेद 15 को अनुच्छेद 19 और 21 के साथ पढ़ा जाता है तो सेक्स सिर्फ लैंगिक पहचान ही नहीं बल्कि लैंगिक रूझान भी है.’

इससे पहले सरकार ने धारा 377 की संवैधानिक वैधता का मामला शीर्ष अदालत के विवेक पर छोड़ दिया था. केंद्र के रुख का संज्ञान लेते हुए न्यायालय ने कहा था कि वह सिर्फ परस्पर सहमति से दो वयस्कों के यौन रिश्तों के संबंध में कानून की वैधता पर विचार कर रहा है.

वहीं टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 के मामले में फैसला सुरक्षित कर लिया है. सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 के पक्ष और विपक्ष में पैरवी करने वाले वकीलों से कहा कि वे इस शुक्रवार तक अपनी बात लिखित में जमा करें. आज सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 90 मिनट से ज्यादा देर तक सुनवाई की.

धारा 377 के पक्ष में बात करने वाले वकीलों ने कहा था कि इस मामले में जनमत संग्रह होना चाहिए लेकिन कोर्ट ने कहा कि फैसला बहुमत के फैसले के आधार पर नहीं बल्कि संविधान नैतिकता के आधार पर किया जाएगा.

बता दें कि धारा 377 में अप्राकृतिक अपराध का जिक्र है. इसके तहत जो भी प्रकृति की व्यवस्था के खिलाफ किसी पुरुष, महिला या पशु के साथ यौनाचार करता है तो उसे उम्रकैद, या दस साल तक की कैद और जुर्माने की सजा हो सकती है.

2009 में दिल्ली हाईकोर्ट ने धारा 377 की वैधता खत्म करते हुए समलैंगिक सेक्स को गैर-आपराधिक ठहराया था. लेकिन साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने सुरेश कुमार कौशल वर्सेस नाज़ फाउंडेशन वाले मामले में धारा 377 कि वैधानिकता को बरकरार रखी थी.

इसके बाद इस मामले में पुनर्विचार याचिका डाली गई जिस पर इस समय सुनवाई हो रही है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर सहमति से किए गए गे सेक्स को गैर-आपराधिक ठहराया जाता है तो एलजीबीटी समुदाय से जुड़ी भेदभाव वाली चीजें खत्म हो जाएंगी.

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