मूल में एधा का निर्माण किस प्रकार होता है ?
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hiii
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Explanation:
जड़ों में अरीय पूल होते हैं तथा एधा का निर्माण द्विबीजपत्री मूल में होता है। सर्वप्रथम फ्लोएम पूल के नीचे स्थित मृदूतक कोशिकाएँ विभज्योतकी (meristematic) हो जाती हैं। इस प्रकार से जितने फ्लोएम पूल होते हैं उतनी ही एधा पट्टियाँ बन जाती हैं। ये पट्टियाँ चाप के रूप में होती हैं। शीघ्र ही परिरम्भ की वे कोशिकायें जो प्रोटोजाइलम के ठीक सामने होती हैं, विभज्योतक हो जाती हैं तथा विभाजित होकर कोशिकाओं की कुछ परतें बनाती हैं।
ये पर्ने कुछ समय पूर्व बनी एधा पट्टियों से मिल जाती हैं। इस प्रकार सम्पूर्ण संवहन एधा अब चापों में न रहकर लहरदार वलय के रूप में दिखाई देती है। यही वलय द्वितीयक जाइलम व द्वितीयक फ्लोएम का निर्माण करता है। इसमें भी जाइलम अधिक बनता है व फ्लोएम कम। अतः कुछ समय पश्चात् संवहन एधा लहरदार न रहकर गोल हो जाती है। इस प्रकार द्वितीयक वृद्धि होती है।
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जड़ों में अरीय पूल होते हैं तथा एधा का निर्माण द्विबीजपत्री मूल में होता है। सर्वप्रथम फ्लोएम पूल के नीचे स्थित मृदूतक कोशिकाएँ विभज्योतकी (meristematic) हो जाती हैं। इस प्रकार से जितने फ्लोएम पूल होते हैं उतनी ही एधा पट्टियाँ बन जाती हैं। ये पट्टियाँ चाप के रूप में होती हैं। शीघ्र ही परिरम्भ की वे कोशिकायें जो प्रोटोजाइलम के ठीक सामने होती हैं, विभज्योतक हो जाती हैं तथा विभाजित होकर कोशिकाओं की कुछ परतें बनाती हैं।
ये पर्ने कुछ समय पूर्व बनी एधा पट्टियों से मिल जाती हैं। इस प्रकार सम्पूर्ण संवहन एधा अब चापों में न रहकर लहरदार वलय के रूप में दिखाई देती है। यही वलय द्वितीयक जाइलम व द्वितीयक फ्लोएम का निर्माण करता है। इसमें भी जाइलम अधिक बनता है व फ्लोएम कम। अतः कुछ समय पश्चात् संवहन एधा लहरदार न रहकर गोल हो जाती है। इस प्रकार द्वितीयक वृद्धि होती है।