'मिले न कबह सुभट रन गादे पंक्ति में गाढे का क्या अर्थ है ?*
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मिले न कबहुँ सुभट रन गाढ़े। द्विज देवता घरहि के बा़ढ़े॥
अनुचित कहि सब लोग पुकारे। रघुपति सयनहिं लखनु नेवारे॥
भावार्थ-
आपको कभी रणधीर बलवान वीर नहीं मिले हैं। हे ब्राह्मण देवता ! आप घर ही में बड़े हैं। यह सुनकर 'अनुचित है, अनुचित है' कहकर सब लोग पुकार उठे। तब रघुनाथ ने इशारे से लक्ष्मण को रोक दिया।
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