Hindi, asked by jagdish7011, 11 months ago

माला तो कर में फिरै, जीभ फिरै मुख माँहि।।
मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तो/सुमिरन नाहिं।।3।।​

Answers

Answered by bhatiamona
336

माला तो कर में फिरे, जीभी फिरे मुख्य माहीं ।

मनवा तो चहुँ दिसि फिरै, यह तो सुमिरन नहीं ॥

दोहे में संत कबीर दास जी कहते है कि हाथ में माला फेरना और मुख्य में जीभ से कुछ भजन करने से  ईश्वर का सच्चा सुमिरन नहीं होता है यदि मन में ही लगन न  हो। दिखावा करने से कुछ नहीं होता , जब तक हम ईश्वर की भक्ति सच्चे दिल से न करें और अपना मन एक तरफ़ रखना चाहिए | दिखावा और ढोंग करने से कुछ नहीं होता |

Answered by kushsaraswat08
54

माला तो कर मे फिरे, जीभि फिरे मुख माहि।

मनुवा तो दसुं दिसी फिरे, यह तो सुमिरन नाहि।।

भावार्थ

कबीर कहते है कि भगवत स्मरण करते समय व्यक्ति हाथ

में माला के मनके फेरता है परन्तुु उसका मन तो दसों दिशाओं में फिरता है अर्थात प्रभु स्मरण के समय भी मन सांसारिक कार्यों में लगा रहता है

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