Hindi, asked by gagan8bgn, 7 months ago

माला तो कर में फिरै, जीभि फिरै
मुख
माँहि
मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तौ सुमिरन नाहिं।।3।।​

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Answered by Anonymous
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Answer:

कबीरदास जी इस पंक्ति के द्वारा यह कहना चाहते हैं कि भगवान का स्मरण एकाग्रचित होकर करना चाहिए। इस साखी के द्वारा कबीर केवल माला फेरकर ईश्वर की उपासना करने को ढोंग बताते हैं।

Answered by aanyabansal
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Answer:

दोहे में संत कबीर दास जी कहते है कि हाथ में माला फेरना और मुख्य में जीभ से कुछ भजन करने से  ईश्वर का सच्चा सुमिरन नहीं होता है यदि मन में ही लगन न  हो। दिखावा करने से कुछ नहीं होता , जब तक हम ईश्वर की भक्ति सच्चे दिल से न करें और अपना मन एक तरफ़ रखना चाहिए

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