मैं मजदूर मुझे देवों की बस्ती से क्या अलंकार और आंसर
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मैं रचना हूँ, रचनाकार भी हूँ.
घर के चूल्हे का अंगार भी हूँ.
मैने बनाया महल अटारी,
सड़क यातायात और सवारी,
पर खुशियों से कोसों दूर हूँ,
क्योंकि मैं मजदूर हूँ.
मेरी पीड़ा कोई नहीं सुनता है,
काम पड़े तो मालिक मुझे चुनता है.
मेरी कीमत मालिक लगाता है,
बुढ़ापे में मुझे दूर भगाता है.
मैं तो लाचार और मजबूर हूँ,
क्योंकि मैं मजदूर हूँ.
बड़े बड़े पुल निर्माण में पसीना बहाता हूँ,
हादसों में अपने ही खून से नहाता हूँ.
कमा कमाकर मैं मालिक को खिलाता हूं,
पर अपने परिवार को टुकड़ों में जिलाता हूँ.
परिवार से ऐसे दूर होता हूँ.
जैसे पेड़ का खजूर हूँ.
क्योंकि मैं मजदूर हूँ, क्योंकि मैं मजदूर हूँ
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per Mere hit Unka pic Kartavya nahin kiya iska bhavarth kya hai
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