मैंने बचपन में छिपकर पैसे बोए थे,
सोचा था, पैसों के प्यारे पेड़ उगेंगे।
रुपयों की कलदार मधुर फ़सलें खनकेंगी,
और, फूल-फलकर मैं मोटा सेठ बनूँगा।
पर बंजर धरती में न एक अंकुर फूटा,
वंध्या मिट्टी ने न एक भी पैसा उगला।
मैं हताश हो, बाट जोहता रहा दिनों तक
बाल-कल्पना के अपलक पाँवड़े बिछाकर।
मैं अबोध था, मैंने ग़लत बीज बोए थे,
ममता को रोपा था, तृष्णा को सींचा था।
(क) कवि ने बचपन में क्या भूल की थी और क्यों?
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