मैंने भ्रमवंश जीवन संचित मधुकरियों की भीख लुटाई पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए
Answers
Answered by
6
Answer:
“मैंने भ्रमवश जीवन संचित, मधुकरियों की भीख लुटाई”‐ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए। प्रस्तुत पंक्ति में देवसेना की वेदना का परिचय मिलता है। वह स्कंदगुप्त से प्रेम कर बैठती है परन्तु स्कंदगुप्त के हृदय में उसके लिए कोई स्थान नहीं है। ... अर्थात् अभिलाषों के होने से मनुष्य के जीवन में उत्साह और प्रेम का संचार होता है
Explanation:
Similar questions