मैंने छुटपन में छिपकर पैसे बोए थे सोचा था पैसों के प्यारे पेड़ उगेंगे, रुपयों की कलदार मधुर फसलें खनकेंगी और फूल फलकर मैं मोटा सेठ बनूंगा ! पर बंजर धरती में एक न अंकुर फूटा बंध्या मिट्टी ने न एक भी पैसा उगला! मैं अबोध था, मैंने गलत बीज बोए थे, ममता को रोपा था, तृष्णा को सींचा था । औ जब फिर से गाढ़ी ऊदी लालसा लिए गहरे, कजरारे बादल बरसे धरती पर, मैंने कौतूहल-वश आँगन के कोने की गीली तह को यों ही उँगली से सहलाकर बीज सेम के दबा दिए मिट्टी के नीचे । मैं फिर भूल गया इस छोटी-सी घटना को और बात भी क्या थी याद जिसे रखता मन । किंतु, एक दिन जब मैं संध्या को आँगन में टहल रहा था- तब सहसा मैंने देखा, उसे हर्ष विमूढ़ हो उठा मैं विस्मय से । देखा आँगन के कोने में कई नवागत छोटे-छोटे छाता ताने खड़े हुए हैं।
प्रश्न 1. कवि ने छुटपन में क्या सोचा था?
प्रश्न 2. कवि ने सेम के बीज क्यों बोए थे?
प्रश्न 3. सेम के बीज बोने का परिणाम क्या हुआ?
प्रश्न 4. 'कजरारे बादल' में विशेषण क्या है ?
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1.छुटपन में छिपकर पैसे बोए थे सोचा था
2.पैसों के प्यारे पेड़ उगेंगे,इसलिए
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