मैने छुटपन मे छिपकर पैसे बोये थे
सोचा था पैसों के प्यारे पेड़ उगेंगे ,
रुपयों की कलदार मधुर फसलें खनकेंगी ,
और, फूल फलकर मै मोटा सेठ बनूगा !
पर बन्जर धरती में एक न अंकुर फूटा ,
बन्ध्या मिट्टी ने एक भी पैसा उगला ।
सपने जाने कहां मिटे , कब धूल हो गये ।
मै हताश हो , बाट जोहता रहा दिनो तक ,
बाल कल्पना के अपलक पांवड़े बिछाकर ।
मै अबोध था, मैने गलत बीज बोये थे ,
ममता को रोपा था , तृष्णा को सींचा था ।
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nahi bhai
aapne bilkul sahi kiya tha
lekin notebandi ho gayi
nahi to aapka ped aapko
ratan tata ka papa bana diya hota
agar maine galat kaha ho to aap mujhe maaf kar dijiyega
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