India Languages, asked by omjaiswar2006, 6 months ago

१४. मौन ही एक
आहे.
O भक्ती
O शक्ती​

Answers

Answered by gangurdesnehal96
4

Answer:

शक्ती

Explanation:

MARK ME AS BRAINLIEST

Answered by suhani7399
2

Answer:

शक्ती

Explanation:

जब हम मौन धारण करते हैं तो सहज ही प्रकृति के अंश बन जाते हैं; क्योंकि प्रकृति में तो सर्वत्र मौन व्याप्त है और मौन रहकर प्रकृति भी निरंतर गतिशील है।एक महान विचारक ने कहा है कि - वार्तालाप भले ही बुद्धि को मूल्यवान बनाता हो, किन्तु मौन प्रतिभा की पाठशाला है। संसार में जितने भी तत्वज्ञानी हुए हैं, सभी मौन के साधक रहे हैं ।आचार्य विनोबा कहते थे -- "मौन और एकांत आत्मा के सर्वोपरि मित्र हैं ।"

मौन के माध्यम से ही आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत होती है ।मौन के द्वारा ही हमें जीवन गहराइयों का ज्ञान होता है। मौन रहने से शान्ति का साम्राज्य फैलेगा ।मौन के माध्यम से हम साधना जगत के रहस्यों का अनावरण कर पाएँगे। आध्यात्मिक जीवन में रुझान रखने वाले लोग अपनी दिनचर्या में मौन को शामिल करते हैं ।मौन के समय वे पूरी तरह से शान्तचित्त और प्रतिक्रियाओं से रहित होते हैं । यमहर्षि रमण ने मौन की अवस्था में ही समस्त साधनाओं को संपन्न किया।

सामान्य जीवन में मौन का पालन करना संभव नहीं हो पाता, इसलिए इस बात का ध्यान रखें कि जितना आवश्यक है , उतना ही बोलें ।बाकी सारा समय यथासंभव मन को शान्त रखें ।मौन रहने से हमारी वाणी की शक्ति का संचय होता है।मौन हमारे जीवन के बहुत से प्रश्नों का उत्तर है।

मौन का अर्थ अन्दर और बाहर से चुप रहना है।

आमतौर पर हम ‘मौन’ का अर्थ होंठों का ना चलना माना जाता है। यह बड़ा सीमित अर्थ है।

कबीर ने कहा है:

कबीरा यह गत अटपटी, चटपट लखि न जाए। जब मन की खटपट मिटे, अधर भया ठहराय।

अधर मतलब होंठ। होंठ वास्तव में तभी ठहरेंगें, तभी शान्त होंगे, जब मन की खटपट मिट जायेगी। हमारे होंठ भी ज्यादा इसीलिए चलते हैं क्योंकि मन अशान्त है, और जब तक मन अशान्त है, तब तक होंठ चलें या न चलें कोई अन्तर नहीं क्योंकि मूल बात तो मन की अशान्ति है। वो बनी हुई हैl

तो किसी को शब्दहीन देखकर ये मत समझ लेना कि वो मौन हो गया है। वो बहुत ज़ोर से चिल्ला रहा है, शब्दहीन होकर चिल्ला रहा है। वो पागल ही है, बस उसके शब्द सुनाई नहीं दे रहे। वो बोल रहा है बस आवाज़ नहीं आ रही। शब्दहीनता को, ध्वनिहीनता को मौन मत समझ लेना।

मौन है- मन का शान्त हो जाना अर्थात कल्पनाओं की व्यर्थ उड़ान न भरे। आन्तरिक मौन में लगातार शब्द मौजूद भी रहें तो भी, मौन बना ही रहता है। उस मौन में तुम कुछ बोलते भी रहो तो उस मौन पर कोई अन्तर नहीं पड़ता।

मौन से संकल्प शक्ति की वृद्धि तथा वाणी के आवेगों पर नियंत्रण होता है। मौन आन्तरिक तप है इसलिए यह आन्तरिक गहराइयों तक ले जाता है। मौन के क्षणों में आन्तरिक जगत के नवीन रहस्य उद्घाटित होते है। वाणी का अपव्यय रोककर मानसिक संकल्प के द्वारा आन्तरिक शक्तियों के क्षय को रोकना परम् मौन को उपलब्ध होना है। मौन से सत्य की सुरक्षा एवं वाणी पर नियंत्रण होता है। मौन के क्षणों में प्रकृति के नवीन रहस्यों के साथ परमात्मा से प्रेरणा मिल सकती है।

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