मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ, मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ; परा है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ!
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मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ,
मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ;
परा है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता
मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ!
भावार्थ : कवि का तात्पर्य यह है कि वह अपने मन की भावनाओं को संसार के सामने कहने का प्रयास कर रहा है। उसे खुशी के जो भी उपहार मिले हैं। वह उन्हें अपने साथ लिए घूम रहा है। उसे यह संसार अधूरा तो लग रहा है और इसी कारण उसे यह संसार पसंद भी नहीं आ रहा। वो ऐसा संसार नहीं चाहता जो उसकी कल्पना में है। उसे प्रेम से भरा संसार पसंद है।
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