मान लो तो हार ठान लो तो जीत पर अनुच्छेद लेखन
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मान लो तो हार और ठान लो तो जीत है। जब ठान कर किसी काम में जुटा जाए तो सफलता हर हाल में मिलती है। यह भी बखूबी साबित किया जा सकता है कि महिला किसी भी क्षेत्र में किसी से भी पीछे नहीं है, बल्कि महिला ही समाज को आइना दिखा सकती है। यही कहना है अनिल कुमार डीएवी पब्लिक स्कूल की प्राचार्या सर्वजीत का। वे मानती हैं कि भारतीय समाज में महिलाएं किसी से कम नहीं हैं। प्राचीन समय में महिला पर पुरूष प्रधान समाज ने कमजोरी की मोहर लगाई। अब महिलाओं ने इस मोहर को धो डाला है। अब महिलाएं समाज को नई दिशा दिखाने में पूरी तरह सक्षम हैं। वे मानती हैं कि संघर्ष किया जाए तो हर मुकाम हासिल किया जा सकता है। सर्वजीत बताती हैं कि वे चार दशक पहले उस समय घर से बाहर निकली जब महिलाओं को किसी भी क्षेत्र में सेवा करने पर एतराज जताया जाता था, मगर उन्होंने ठान लिया था कि जीवन का उद्देश्य पूर्ण करना है। पहले अर्थशास्त्र व इतिहास में एमए की। इसके साथ ही उन्होंने एलएलबी की डिग्री हासिल की। वे 32 साल पहले बतौर शिक्षिका डीएवी संस्था से जुड़ी। वह एक प्रकार से लालटेन का दौर था। उस दौर में एक महिला के नाते घर से बाहर संघर्ष की राह चुनना कठिन कार्य था, मगर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। अब 23 साल से बतौर प्राचार्य कार्यरत है। सर्वजीत बताती है कि महिलाएं त्याग करने में सदैव आगे रही हैं। यही नहीं महिलाएं धर्म के लिए भी प्राण न्योछावर करती आई हैं। वे बताती हैं कि उन्होंने जीवन का अहम मुकाम हासिल करने की ठान ली थी। इसी से कामयाब होने में सफलता मिली। उन्होंने बतौर एक शिक्षिका ठान लिया कि छात्र वर्ग को हर क्षेत्र के लिए तैयार किया जाए। छात्रों को खेल, कला और शिक्षा क्षेत्र में राज्य व राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिए आज भी तैयार किया जाता है। उनके मार्गदर्शन में शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्र आज इंजीनियर, डाक्टर, सैन्य सेवा आदि क्षेत्रों में नाम चमका रहे हैं। उन्होंने लड़कियों को भी खेल क्षेत्र में उतारने में पहल हासिल की। लड़कियों ने विभिन्न खेलों में गोल्ड, रजत व कांस्य पदक हासिल कर डीएवी का नाम चमकाया। सर्वजीत शिक्षण के साथ साथ समाज हित के कार्यों में पूरा समय देती आ रही हैं। उन्होंने भारत विकास परिषद ने महिला प्रमुख पद से नवाजा। उन्होंने विभिन्न प्रतियोगिताओं के माध्यम से छात्र वर्ग में छिपी प्रतिभा को मुखरित किया। ऐसे छात्रों को उत्साह बढ़ाया। वे आज भी छात्र छात्राओं को ठान लेने की शिक्षा देती हैं। इसे ही वे कामयाब होने का गुरुमंत्र मानती है।