Hindi, asked by ps3547109, 1 month ago

मैंने नम स्वर में पड़ोसी दीनदयाल को पुकारा शब्द का अर्थ बताइए​

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हिन्दू शास्त्रों में आए बहुत से शब्दों के अर्थ का अनर्थ किए जाने के कारण समाज में भटकाव, भ्रम और विभाजन की‍ स्थिति बनी है। आओ जानते हैं किस शब्द का क्या सही अर्थ है।

1. शूद्र : यह शब्द अक्सर गलत संदर्भों में प्रचारित किया जाता रहा है और इसके अर्थ भी गलत निकाले जाते रहे हैं। 'वेदांत सूत्र' में बादरायण ने 'शूद्र' शब्द को दो भागों में विभक्त किया गया- 'शुक्’ और ‘द्र’, जो ‘द्रु’ धातु से बना है और जिसका अर्थ है, दौड़ना। शंकर ने इसका अर्थ निकाला 'वह शोक के अंदर दौड़ गया’, ‘वह शोक निमग्न हो गया’ (शुचम् अभिदुद्राव)। शूद्र शब्द निकला है शुक् (दुःख)+द्र (बेधित) अर्थात जो दुख से बेधित है वह शूद्र है। हालांकि कुछ विद्वान कहते हैं कि जिसका शुद्ध आचरण न हो उन्हें शूद्र कहा जाता था। ऐसी कई जातियां थीं, जो मांसभक्षण के अलावा शराबादि का सेवन करती थीं उनको शूद्र मान लिया गया था और ऐसे भी लोग थे जिन्होंने समाज के नियमों को तोड़कर अन्य से रोटी-बेटी का संबंध रखा उनको भी शूद्र मान लिया गया और जो काले या मलिच होते थे उनको भी शूद्र मान लिया गया। दूसरा, समाज के वे बहिष्कृत लोग जिन्हें शूद्र माना गया। ऐसा हर देश और धर्म में होता रहा है, जहां इस तरह के लोगों को अलग-अलग नाम से पुकारा जाता है।> > कैसे हिन्दुओं को जाति में बांटा गया?

अक्सर यह पढ़ने को मिलता है- 'शूद्र वर्ण'। इस शूद्र शब्द को ही इतिहास को बिगाड़ने वालों ने क्षुद्र, दास, अनार्य में वर्णित किया। वेदों में सबसे बाद में अथर्ववेद लिखा गया जिसमें समाज के ऊंच-नीच की चर्चा मिलती है लेकिन शूद्र शब्द की चर्चा नहीं मिलती। वैदिककाल के अंत के बाद यह शब्द अस्तित्व में आया। वास्तविकता यह है कि आर्थिक तथा सामाजिक विषमताओं के कारण आर्य और आर्येतर दोनों के अंदर श्रमिक समुदाय का उदय हुआ और ये श्रमिक आगे जाकर शूद्र कहलाए। बाद में इन्हें ही क्षुद्र कहा जाने लगा, इन्हें ही अछूत और इन्हें ही दास भी। हालांकि कुछ लोग क्षुद्र का अर्थ छोटा, अछूत का अर्थ जिसे छूना नहीं और दास का अर्थ गुलाम निकालते हैं। लेकिन यदि आपको समाज का विभाजन करना है तो शूद्र का अर्थ आप मनमाने तरीके से नीच भी कर सकते हैं।

हिन्दू समाज को तोड़ने के लिए शूद्र का हर काल में अलग-अलग अर्थ किया गया। यहां यह बताना जरूरी है कि शूद्र भी आर्य थे। इसके सैकड़ों उदाहरण शास्त्रों में मिलेंगे। युधिष्ठिर के राज्याभिषेक में भी शूद्र बुलाए गए थे। यह बात महाभारत सभापर्व अध्याय 33 श्लोक 41-42 से सिद्ध है। प्रजा की दो मुख्य सभाएं थीं अर्थात जनपद और पौर। इन दोनों के कुछ सभासद शूद्र होते थे, इन सभासदों का ब्राह्मण भी आदर करते थे।

मैत्रेयी संहिता (4-2-7-10), पंचविंश ब्राह्मण (6-1-11), ऋग्वेद (7-8-6-7; 8-19-36; 8-56-3) से ज्ञात होता था कि आर्य भी गुलाम होते थे। अतएव पश्चिमी मत कि शूद्रों को आर्यों ने गुलाम बनाया था सर्वथा गलत है। और शूद्र न तो दास्य थे और न दस्यु।

2. आर्य : आर्य का अर्थ होता है श्रेष्ठ। अधिकतर लोगों ने या कहें कि हमारे तथा‍कथित जाने-माने इतिहासकारों ने लिखा है कि आर्य एक जाति थी, जो मध्य एशिया से भारत में आई थी और जिसने यहां के दास और दस्यु को हाशिये पर धकेलकर राज्य किया था। उनकी यह धारणा बिलकुल ही गलत है। यहां यह बताना जरूरी है कि आर्य नाम की कोई जाति नहीं थी। आर्य उन लोगों को कहा जाता था, जो वेदों को मानते थे। और जो वेदों को नहीं मानते थे उन्हें अनार्य कहा जाता था। वेदों को मानने वालों में भारत की कई जातियों के लोग शामिल थे। आर्यों के बारे में पश्‍चिम का मत पूर्णत: गलत है। आर्यों के काल में ऐसे भी कई आर्य थे (‍जिनके पूर्वज वेद को मानकर ही आर्य कहलाए थे)। जो वेदों को नहीं मानते थे फिर भी वे आर्य कहलाते थे, जैसे आज ऐसे कई हिन्दू हैं, जो नास्तिक हैं फिर भी है तो हिन्दू ही। यहां यह बताना जरूरी है कि शूद्र भी आर्य थे। इसके सैकड़ों उदाहरण शास्त्रों में मिलेंगे।

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