मानिंद-ए-शमां यूँ तो जले हैं तमाम उम्र, लेकिन हमारे दिल के अँधेरे न कम हुए।
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दिल को इसी फ़रेब में रखा है उम्रभर, इस इम्तिहां के बाद कोई इम्तिहां नहीं।
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