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ऋतुविज्ञान या मौसम विज्ञान (Meteorology) कई विधाओं को समेटे हुए विज्ञान है जो वायुमण्डल का अध्ययन करता है। मौसम विज्ञान में मौसम की प्रक्रिया एवं मौसम का पूर्वानुमान अध्ययन के केन्द्रबिन्दु होते हैं। मौसम विज्ञान का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है किन्तु अट्ठारहवीं शती तक इसमें खास प्रगति नहीं हो सकी थी। उन्नीसवीं शती में विभिन्न देशों में मौसम के आकड़ों के प्रेक्षण से इसमें गति आयी। बीसवीं शती के उत्तरार्ध में मौसम की भविष्यवाणी के लिये कम्प्यूटर के इस्तेमाल से इस क्षेत्र में क्रान्ति आ गयी।
मौसम विज्ञान के अध्ययन में पृथ्वी के वायुमण्डल के कुछ चरों (variables) का प्रेक्षण बहुत महत्व रखता है; ये चर हैं - ताप, हवा का दाब, जल वाष्प या आर्द्रता आदि। इन चरों का मान व इनके परिवर्तन की दर (समय और दूरी के सापेक्ष) बहुत हद तक मौसम का निर्धारण करते हैं।
ऋतुविज्ञान वायुमंडल का विज्ञान है। आधुनिक ऋतुविज्ञान में वायुमंडल में होनेवाली भौतिक घटनाओं का तथा उनसे संबद्ध उपलगोले (लिथोस्फ़ियर) और जलगोले (हाइड्रोस्फ़ियर) की घटनाओं का अध्ययन किया जाता है। ऋतुविज्ञान के विषय का वर्णन, जहाँ तक उसका संबंध निचले वायुमंडल की मौसमी घटनाओं से हैं, अधिकतम सुविधापूर्वक निम्नलिखित चार भागों में किया जा सकता है:
(1) यांत्रिक ऋतुविज्ञान (फ़िजिकल और डाइनैमिकल मीटिअरॉलोजी) जिसका संबंध उन प्रेक्षणयंत्रों तथा प्रेक्षणविधियों से है जिनके द्वारा वायुमंडल की ऋतुप्रभावक अवस्थाओं की सूचना प्राप्त की जाती है।
(2) भौतिक तथा गतिक ऋतुविज्ञान (फ़िजिकल और डाइनैमिकल मीटिअरॉलोजी) जिसमें प्रेक्षित ऋतु संबंधी घटनाओं का गुणात्मक तथा पारिमाणिक (क्वांटिटेटिव) विवेचन किया जाता है।
(3) संक्षिप्त ऋतुविज्ञान (सिनॉष्टिक मीटिअरॉलोजी) जो मुख्यत: ऋतु के पूर्वानुमान के लिए संक्षिप्त आर्तव (ऋतु संबंधी) मानचित्रों द्वारा संक्षिप्त आर्तव प्रेक्षणों के अध्ययन से संबंध रखता है।
(4) जलवायु-तत्व (क्लाइमैटॉलोजी) जिसमें संसार के सब भागों के आर्तव प्रेक्षणों का सांख्यिकीय (स्टैटिस्टिकल) अध्ययन होता है और उसके द्वारा उन प्रसामान्य तथा मध्यमान (औसत) परिस्थितियों का ठीक-ठीक पता लगाया जाता है जिसके द्वारा जलवायु का वर्णन किया जा सकता है।