'मान्य योग्य नहिं होत कोऊ कोरो पद पाए ।
मान्य योग्य नर ते जे केवल परहित जाए ॥"
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मान्य योग्य नहिं होत कोऊ कोरो पद पाए। मान्य योग्य नर ते, जे केवल परहित जाए ॥ जे स्वारथ रत धूर्त हंस से काक-चरित-रत। ते औरन हति बंचि प्रभुहि नित होहिं समुन्नत ॥
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