मानचित्रकला किसे कहते है
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मानचित्र तथा विभिन्न संबंधित उपकरणों की रचना, इनके सिद्धांतों और विधियों का ज्ञान एवं अध्ययन मानचित्रकला (Cartography) कहलाता है। मानचित्र के अतिरिक्त तथ्य प्रदर्शन के लिये विविध प्रकार के अन्य उपकरण, जैसे उच्चावचन मॉडल, गोलक, मानारेख (cartograms) आदि भी बनाए जाते हैं।
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मानचित्र विज्ञान का सम्बंध मानचित्र और आरेख तैयार करने से है, जो भौगोलिक परिघटनाओं के वितरण को दर्शाते हैं। यह मानचित्र व आरेख निर्माण करने का प्रयोगात्मक अध्ययन है। यह मानचित्रों और प्रतीकाक्षरों की सहायता से पृथ्वी को प्रस्तुत करता है। पारंपरिक रूप से मानचित्रों का निर्माण कलम, स्याही और कागज की सहायता से होता रहा है, परन्तु कम्प्यूटर ने मानचित्र विज्ञान में क्रांति ला दी है। जी. आई. एस. विधि के द्वारा कोई भी व्यक्ति मानचित्र व आरेख अपनी इच्छानुसार पूर्ण दक्षता से तैयार कर सकता है।
स्थानिक आँकड़े मापन और अन्य प्रकाशित स्रोतों द्वारा प्राप्त किये जाते हैं और उसे विभिन्न उद्देश्यों के लिए प्रयोग हेतु डाटाबेस में भंडारित किया जा सकता है। स्याही और कागज द्वारा मानचित्र बनाने की परंपरा अब समाप्त होती जा रही है। इसका स्थान कम्प्यूटर निर्मित मानचित्र ले रहे हैं। ये मानचित्र अधिक गत्यात्मक और अंतःक्रियात्मक होते है तथा अंकीय युक्ति (डिजिटल डिवाइस) से इसमें परिवर्तन किये जा सकते हैं। आज अधिक व्यापारिक गुणवत्ता वाले मानचित्र कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर की सहायता से बनाये गये हैं। ये कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर कम्प्यूटर आधारित आंकड़ा प्रबंधन (कैड/CAD), भौगोलिक सूचना तंत्र (GIS) और भूमंडलीय स्थिति तंत्र (जीपीएस/ GPS) है।
मानचित्रकला, आरेखण तकनीक के संग्रहण से निकलकर वास्तविक विज्ञान बन गई है। एक मानचित्रकार को अवश्य समझना चाहिए कि कौन सा संकेत पृथ्वी के बारे में प्रभावशाली सूचना देता है और उन्हें ऐसे मानचित्र तैयार करने चाहिए जिनसे प्रत्येक व्यक्ति मानचित्रों के प्रयोग हेतु उत्साहित हो और वह इसका प्रयोग स्थानों को ढूँढ़ने तथा अपने दैनिक जीवन में करे। मानचित्रकारों को भूगणित के साथ-साथ आधुनिक गणित में भी पारंगत होना चाहिए ताकि वे समझ सकें कि पृथ्वी की आकृति, निरीक्षण के लिए चौरस सतह पर प्रक्षेपित मानचित्र के चिन्हों की विकृति को किस प्रकार प्रभावित करती है।
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