में नहीं चाहता चिर-सुख,
मैं नहीं चाहता चिर दुख;
सुख-दुख की खेल मिचौनी.
खोले जीवन अपना मुख!
सुख-दुख के मधुर मिलन से
यह जीवन हो परिपूरन;
फिर धन में ओझल हों शशि
फिर शशि से ओझल हो घन!
पंक्तियाँ का आशय लिखें ।
Answers
Explanation:
Is kwita ko maine likh diya h...ok...
मैं नहीं चाहता चिर-सुख,
मैं नहीं चाहता चिर दुख;
सुख-दुख की खेल मिचौनी
खोले जीवन अपना मुख।
सुख-दुख के मधुर मिलन से
सुख-दुख के मधुर मिलन सेयह जीवन हो परिपूरण;
फिर घन में ओझल हो शशि,
फिर शशि से ओझल हो घन।
जग पीड़ित है अति-दुख से,
जग पीड़ित रे अति-सुख से,
मानव-जग में बँट जावें
मानव-जग में बँट जावेंदुख सुख से औ’ सुख दुख से।
अविरत दुख है उत्पीड़न,
अविरत दुख है उत्पीड़न,अविरत सुख भी उत्पीड़न,
अविरत दुख है उत्पीड़न,अविरत सुख भी उत्पीड़न,दुख-सुख की निशा-दिवा में,
सोता-जगता जग-जीवन।
यह साँझ-उषा का आँगन,
आलिंगन विरह-मिलन का;
चिर हास-अश्रुमय आनन
चिर हास-अश्रुमय आननरे इस मानव-जीवन का !
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Thank u...♡
Explanation:
कविवर पंत कहते हैं कि वे अपने जीवन में सदा सुख या दुख नहीं चाहते हैं। उन दोनों का मेल होना चाहिए। जैसे बच्चे आँख – मिचौनी खेल में कुछ समय आँखें बन्द करके फिर खोल देते हैं, उसी प्रकार जीवन के खेल में सुख या दुख कुछ समय आँख खोले और फिर बन्द करे। कहने का मतलब यह है कि मानव के जीवन में कुछ समय सुख है और कुछ समय दुख। तभी जीवन, खेल की ही तरह मज़ेदार होगा। नहीं तो जीना भी कठिन होगा।
जीवन में सुख और दुख का मीठा मिलाप होना चाहिए। जिस समय कुछ समय बादलों में अदृश्य रहने के बाद चन्द्रमा आकाश में फिर चांदनी फैलता है उसी प्रकार कुछ समय तक दुखों में अदृश्य रहने के बाद सुख को भी फिर जीवन में दर्शन देना चाहिए। बादलों में छिपे चाँद के दिखाई देते ही मन को बड़ा आनन्द मिलता है। वैसे ही कुछ काल तक दुख करने का अनुभव के बाद मानव को सुख मिलेगा तो उसे उस सुख से अत्यंत संतोष मिलता है। इसी से कवि चाहता है मानव जीवन में सुख-दुख बारी-बारी से आए तो अच्छा होगा।