म्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए :
मान्य तौर से ब्राह्मण टोले के लोगों का शिल्पकार टोले में उठना-बैठना नहीं होता था। किसी काम-का
सिलसिले में यदि शिल्पकार टोले में आना ही पड़ा तो खड़े-खड़े बातचीत निपटा ली जाती थी। ब्राह्म
ले के लोगों को बैठने के लिए कहना भी उनकी मर्यादा के विरुद्ध समझा जाता था।
अथवा
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निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए :
सामान्य तौर से ब्राह्मण टोले के लोगों का शिल्पकार टोले में उठना-बैठना नहीं होता था। किसी काम-काज के सिलसिले में यदि शिल्पकार टोले में आना ही पड़ा तो खड़े-खड़े बातचीत निपटा ली जाती थी। ब्राह्मण टोले के लोगों को बैठने के लिए कहना भी उनकी मर्यादा के विरुद्ध समझा जाता था।
संदर्भ : यह गद्यांश गलता लोहा पाठ से लिया गया है | गलता लोहा पाठ शेखर जोशी द्वारा लिखी गई है| गलता लोहा पाठ के आधार पर पहाड़ी गांव में जीवन व्यतीत करने में बहुत समस्याएँ आती है |
प्रसंग : गद्यांश में ब्राह्मण जाती के लोगों के बारे में बताया है | ब्राह्मण जाती समाज में उच्च जाती मानी जाती है |
व्याख्या : गद्यांश में बताया है , ब्राह्मण जाती के लोग अपने आप सबसे ऊँची जाती मानते है | वह शिल्पकार के टोले में उठते-बैठते नहीं थे और न ही खाते पीते है | कामकाज के कारण शिल्पकारों के पास जाते थे, परंतु वहाँ बैठते नहीं थे। उनसे बैठने के लिए कहना भी उनकी मर्यादा के विरुद्ध समझा जाता था। वह छोटी जाती के लोगों के घरों में नहीं जाते है |