मां नर्मदा की परिणय कथा को लिखिए
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नर्मदा ने किसी ऐसे ही असहनीय क्षण में निर्णय लिया कि ऐसे धोखेबाज के साथ से अच्छा है इसे छोड़कर चल देना। कहते हैं तभी से नर्मदा ने अपनी दिशा बदल ली। सोनभद्र और जुहिला ने नर्मदा को जाते देखा। सोनभद्र को दुख हुआ। बचपन की सखी उसे छोड़कर जा रही थी। उसने पुकारा- 'न...र...म...दा...रूक जाओ, लौट आओ नर्मदा।
लेकिन नर्मदा जी ने हमेशा कुंवारी रहने का प्रण कर लिया। युवावस्था में ही सन्यासिनी बन गई। रास्ते में घनघोर पहाड़ियां आईं। हरे-भरे जंगल आए। पर वह रास्ता बनाती चली गईं। कल-कल छल-छल का शोर करती बढ़ती गईं। मंडला के आदिमजनों के इलाके में पहुंचीं। कहते हैं आज भी नर्मदा की परिक्रमा में कहीं-कहीं नर्मदा का करूण विलाप सुनाई पड़ता है।
नर्मदा ने बंगाल सागर की यात्रा छोड़ी और अरब सागर की ओर दौड़ीं। भौगोलिक तथ्य देखिए कि हमारे देश की सभी बड़ी नदियां बंगाल सागर में मिलती हैं लेकिन गुस्से के कारण नर्मदा अरब सागर में समा गई।
नर्मदा की कथा जनमानस में कई रूपों में प्रचलित है लेकिन चिरकुवांरी नर्मदा का सात्विक सौन्दर्य, चारित्रिक तेज और भावनात्मक उफान नर्मदा परिक्रमा के दौरान हर संवेदनशील मन महसूस करता है। कहने को वह नदी रूप में है लेकिन चाहे-अनचाहे भक्त-गण उनका मानवीयकरण कर ही लेते है। पौराणिक कथा और यथार्थ के भौगोलिक सत्य का सुंदर सम्मिलन उनकी इस भावना को बल प्रदान करता है और वे कह उठते हैं नमामि देवी नर्मदे.... !
Explanation:
प्राचीन धर्म ग्रंथों में जिस रेवा नदी का जिक्र हुआ है वह भारत की एक पवित्र नदी नर्मदा है। कहते हैं गंगा में स्नान करने से जो पुण्य प्राप्त होता है वह नर्मदा नदी के दर्शन मात्र से ही प्राप्त हो जाता है। इस नदी का हर कंकड़ शंकर के समान है, जिसे नर्मदेश्वर महादेव के रूप में पूजा जाता है। नर्मदा के जन्म की कहानी बहुत ही रोचक है और उससे भी रोचक है इसके नदी बनने के कहानी। ऐसी कथा है कि यह भगवान शिव के पसीने से एक 12 साल की कन्या रूप में उत्पन्न हुई थीं। फिर जीवन ने ऐसा मोड़ लिया कि प्यार में इन्हें धोखा मिला और यह उलटी दिशा में बह निकली।