Hindi, asked by tamanna2947, 11 months ago

मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं।
मुकताफल मुकता चुगैं, अब उड़ि अनत न जाहिं। ka arth btaiye plz​

Answers

Answered by shishir303
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मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं।  

मुक्ताफल मुक्ता चुगैं, अब उड़ि अनत ना जाहिं।।  

भावार्थ : यह कबीर दास द्वारा रचित भक्ति भावना से भरा हुआ एक दोहा है।  इस दोहे में कबीर कहत हैं, जो सच्चे संत होते हैं। वे सांसारिक सुख दुख से विरक्त होकर ईश्वर की भक्ति एवं आनंद में लीन हो जाते हैं। और वह उस परमआनंद रूपी मुक्ता फल अर्थात मोती को प्राप्त कर लेते हैं। ये सच्चे संत ईश्वर भक्ति रूपी मानसरोवर में हंस बनकर परम आनंद रूपी मुक्ता फल अर्थात मोती को चुग लेते हैं। यहां पर कवि का मुक्ता फल से आशय ईश्वर की भक्ति रूपी परम आनंद का मोती है। जिस तरह मानसरोवर के जल में रहने वाले हंस सरोवर को छोड़कर कहीं जाना नही उसकी जो संत ईश्वर भक्तिरूपी मुक्ताफल चुन लेते हैं, वो फिर कहीं नही जाते और ईश्वर के आनंद में ही लीन रहते हैं।

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