मानव इस धरती का सबसे साहसी और विलक्षण जीव है। वह तूफानों से ल
में कितने भी तूफान आएँ, पर व
ह हार नहीं मानता है। कवि इसीलिए तो व
की चुनौती को स्वीकार करो और अपनी नाव को तूफ़ानों की ओर घुमा दो
तुफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार ।
आज सिंधु ने विष उगला है,
लहरों का यौवन मचला है,
आज हृदय में और सिंधु में,
साथ उठा है ज्वार,
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
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इन पंक्तियों के माध्यम से कवि मानव के उत्साही प्रवित्ति पर प्रकाश डाला रहा है, वह आशावाद और प्रतिकार की उत्कटता की बात करता हुआ, मनुष्य को अभिप्रेरित करता है।
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