मानव-जीवन के आदिकाल में अनुशासन की कोई
संकल्पना नहीं थी और न आज की भाँति बड़े-बड़े
नगर या राज्य ही थे |मानव जंगल में रहता था,
'जिसकी लाठी उसकी भैंस' वाली कहावत उसके
जीवन पर पूर्णत: चरितार्थ होती थी| व्यक्ति पर
किसी भी नियम का बंधन या किसी प्रकार के
कर्तव्यों का दायित्व नहीं था, किन्तु इतना स्वतंत्र
और निरंकुश होते हुए भी मानव प्रसन्न नहीं था |
आपसी टकराव होते थे, अधिकारों-कर्तव्यों में
संघर्ष होता था और नियमों की कमी उसे खलती
थी | अपने उद्देश्य की सिद्धि एवं आवष्यकताओं
की पूर्ति के लिए मानव ने अन्तत: कुछ नियमों का
निर्माण किया | उनमें से कुछ नियमों के पालन
करवाने का अधिकार राज्य को और कुछ का
अधिकार समाज को दे दिया गया |व्यक्ति के
बहुमुखी विकास में सहायक होने वाले इन नियमों
का पालन ही अनुशासन कहलाता है | समाज ने
प्रारम्भ में अपने अनुभवों से ही अनुशासन के इन
नियमों को सीखा, विकसित किया और
सुव्यवस्थित किया होगा|
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