मानव जीवन कैसा जीवन है?
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मानव जीवन का लक्ष्य है समग्रता से खिलना, खुलना और खेलना यानी अपनी उच्चतम संभावना को खोलना। जैसे बगिया का हर फूल पूर्ण रूप से खिलना चाहता है। हर फूल का लक्ष्य होता है कि वह पूर्ण खिले और हवाओं के ज़रिए अपनी ख़ुशबू चारों दिशाओं में फैलाए। उसी तरह समग्रता से जीकर सारे संसार के लिए निमित्त बनना ही मानव जीवन का मूल लक्ष्य है।
Explanation:
मानव जीवन का लक्ष्य है समग्रता से खिलना, खुलना और खेलना यानी अपनी उच्चतम संभावना को खोलना। जैसे बगिया का हर फूल पूर्ण रूप से खिलना चाहता है। हर फूल का लक्ष्य होता है कि वह पूर्ण खिले और हवाओं के ज़रिए अपनी ख़ुशबू चारों दिशाओं में फैलाए। उसी तरह समग्रता से जीकर सारे संसार के लिए निमित्त बनना ही मानव जीवन का मूल लक्ष्य है।
इस संसार में रहकर हरेक को पूर्णता से खुलकर, खिलकर, वह करना है जो वह कर सकता है। किसी दूसरे की बराबरी कम से कम तब तक नहीं करनी है, जब तक आप जीवन रूपी सागर में तैरना नहीं सीख जाते। प्रकृति में चमेली का फूल, जूही के फूल के बारे में यह नहीं सोचता है कि ‘मैं जूही का फूल क्यों नहीं हूँ ?’ अत: आप अधिकतम क्या विकास कर सकते हैं और कैसे जीवन के सागर में तैरना सीख सकते हैं, इसे अपने लक्ष्य का पहला क़दम बनाएँ।
मानव जीवन के लक्ष्य के बारे में आज तक लोगों की यही धारणा रही है कि भरपूर धन-दौलत, नाम-शोहरत, मान-इ़ज़्ज़त कमाने में ही मानव जीवन की सार्थकता है। लोगों से यह ग़लती हो जाती है कि वे पैसे को ही अपना लक्ष्य बना लेते हैं। पैसा सुविधा है, मज़बूत रास्ता है मगर मंज़िल नहीं। स़िर्फ करियर बनाना, पैसे इकट्ठे करना, शादी करना, बच्चे पैदा करना, उन बच्चों का करियर बनाना, उनके बच्चों का पालन-पोषण करके मर जाना ही मानव जीवन का लक्ष्य नहीं है।