मानव जीवन किससे सज्जित है ?
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मानव जीवन बड़ा मूल्यवान होता है। इसे समझना और सहेजकर रखना हमारा परम कर्तव्य है। शास्त्र कहते हैं-जब अनेक जन्मों के पुण्य उदय होते हैं तब कहीं जाकर मनुष्य योनि प्राप्त होती है।
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मानव जीवन बड़ा मूल्यवान होता है। इसे समझना और सहेजकर रखना हमारा परम कर्तव्य है। शास्त्र कहते हैं-जब अनेक जन्मों के पुण्य उदय होते हैं तब कहीं जाकर मनुष्य योनि प्राप्त होती है। यह जीवन दुर्लभ है। ईश्वर ने हमें अन्य सभी जीवों से श्रेष्ठ बनाया है। बुद्धि और विवेक दिया है। इसका हमें सदुपयोग करते हुए मानव जीवन के मूल्यों की रक्षा करनी चाहिए। नैतिकता, प्रेम, सद्भावना, सहिष्णुता, त्याग और परोपकार तथा सेवा भाव आदि मनुष्य के आभूषण हैं। इन्हें कोई चुरा न ले इसका सदैव ध्यान रखना हमारा परम कर्तव्य है। सांसारिक वस्तुओं की रक्षा तो हम बड़े यत्न से करते हैं, पर क्या हम अपने नैतिक, सामाजिक और धार्मिक मूल्यों की रक्षा भी उतने ही यत्न से करते हैं? सोचना होगा। आज प्राय: यह देखने में आता है कि मनुष्य का जीवन अशांत, तनावपूर्ण है, शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा हो जो सुखद और आनंद का अनुभव करता हो। इसका एक ही कारण है कि हम भौतिकता में इतना जकड़ गए हैं कि कुछ अच्छा सोचने का मौका ही नहीं मिलता। आज नहीं कल कर लेंगे, यह सोच अच्छी नहीं है। कल किसने देखा है? समय तीव्रता से बीत रहा है, हम एक-एक दिन जीवन का खो रहे हैं। वास्तविक सुख आध्यात्मिकता में है न कि भौतिकता में। सद्कर्मो को करते हुए ईश्वर के विषय में मनन, चिंतन और उनका भजन करना ही आध्यात्मिकता है। आध्यात्मिक व्यक्ति कभी कुमार्ग पर नहीं चल सकता। उसके जीवन में कभी अशांति नहीं होगी। हमें अपने सत्कर्मो के द्वारा जीवन मूल्यों की रक्षा करनी चाहिए। मानव जीवन पाकर अगर हम इसे ठीक से नहीं जी सके तो सारा जीवन व्यर्थ गया, ऐसा समझना चाहिए। यह प्रकृति का नियम है कि जिसने जन्म लिया है, उसकी मृत्यु भी निश्चित है। जिस दिन संसार छूट जाएगा, लोग हमें भूल जाएंगे। अत: हमें कुछ ऐसा कार्य करना चाहिए कि मृत्यु के बाद भी लोग याद करें, सत्कर्म करने वाला व्यक्ति मृत्यु के बाद भी जीवित रहता है
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