मानव जीवन में दुख और कठिनाइयां आना कारण लिखिए std 9th hindi paper
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आमतौर से दुख को नापसंद किया जाता है। लोग समझते है कि पाप के फलस्वरूप अथवा ईश्वरीय कोप के कारण दुख आता है, परंतु यह बात पूर्ण रूप से सत्य नहीं है। दुखों का एक कारण पाप भी है। यह तो ठीक है, परंतु यह ठीक नहीं कि समस्त दुख पापों के कारण ही आते है। बहुत बार ऐसा होता है कि मनुष्य दुखी अपने प्रारब्ध के कारण होता है। प्रारब्ध में वे सभी कर्म आते है जिनसे पूर्व जन्म में हमने किसी को दुख पहुंचाया होता है। दूसरा कारण क्रियमाण है। ये वे कारण है जिनका फल प्राय: साथ-साथ या मनुष्य को इसी जन्म में भोगना पड़ता है। इसका तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण कारण कि ईश्वर को जब किसी प्राणी पर दया करके उसे अपनी शरण में लेना होता है, कल्याण के पथ पर ले जाना होता है तो उसे भवबंधन से, कुप्रवृत्तियों से छुड़ाने के लिए ऐसे दुखदायक अवसर उत्पन्न करते है, जिनकी ठोकर खाकर मनुष्य अपनी भूल को समझ जाए और उसका सच्चा भक्त बन जाए।
सांसारिक मोह, ममता और विषयवासना का चस्का ऐसा लुभावना होता है कि उसे साधारण इच्छा होने से छोड़ा नहीं जा सकता। एक हलका सा विचार आता है कि जीवन जैसी वस्तु का उपयोग किसी श्रेष्ठ काम में करना चाहिए, परंतु दूसरे ही क्षण ऐसी लुभावनी परिस्थितियां सामने आ जाती है जिसके कारण वह विचार धूमिल पड़ जाता है और मनुष्य जहां का तहां आकर फिर से खड़ा हो जाता है। इस प्रकार के कीचड़ से निकलने के लिए भगवान अपने भक्त को झटका देते है, सोते हुए को जगाने के लिए बड़े जोर से झकझोरते है। यह झटका ही हमें दुख जैसा प्रतीत होता है। गंभीर बीमारी, परमप्रिय स्वजनों की मृत्यु, विश्वसनीय मित्रों द्वारा अपमान या विश्वासघात जैसी दिल को चोट पहुंचाने वाली घटनाएं इसलिए भी आती है कि उनके जबरदस्त झटके के आघात से मनुष्य तिलमिला जाए और सजग होकर इस संसार से मोह को तिलांजलि दे दे। भगवान अपने भक्तों को कष्ट देते ही इसलिए है जिससे वे यह समझ सकें कि कौन उनके सच्चे भक्त है।