मानव जीवन और मिट्टी के बीच बड़ा ही प्राचीन संबंध रहा है यह समझाइए please help me
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चार्ल्स डार्विन की "ओरिजिन ऑव स्पीशीज़" नामक पुस्तक के पूर्व साधारण धारणा यह थी कि सभी जीवधारियों को किसी दैवी शक्ति (ईश्वर) ने उत्पन्न किया है तथा उनकी संख्या, रूप और आकृति सदा से ही निश्चित रही है। परंतु उक्त पुस्तक के प्रकाशन (सन् 1859) के पश्चात् विकासवाद ने इस धारणा का स्थान ग्रहण कर लिया और फिर अन्य जंतुओं की भाँति मनुष्य के लिये भी यह प्रश्न साधारणतया पूछा जाने लगा कि उसका विकास कब और किस जंतु अथवा जंतुसमूह से हुआ। इस प्रश्न का उत्तर भी डार्विन ने अपनी दूसरी पुस्तक "डिसेंट ऑव मैन" (सन् 1871) द्वारा देने की चेष्टा करते हुए बताया कि केवल वानर (विशेषकर मानवाकार) ही मनुष्य के पूर्वजों के समीप आ सकते हैं। दुर्भाग्यवश धार्मिक प्रवृत्तियोंवाले लोगों ने डार्विन के उक्त कथन का त्रुटिपुर्ण अर्थ (कि वानर स्वयं ही मानव का पूर्वज है) लगाकर, न केवल उसका विरोध किया वरन् जनसाधारण में बंदरों को ही मनुष्य का पूर्वज होने की धारणा को प्रचलित कर दिया, जो आज भी अपना स्थान बनाए हुए है। यद्यपि डार्विन मनुष्य विकास के प्रश्न का समाधान न कर सके, तथापि इन्होंने दो गूढ़ तथ्यों की ओर प्राणिविज्ञानियों का ध्यान आकर्षित किया :
कपि और मानव एक दुसरे के पूर्वज है
(1) मानवाकार कपि ही मनुष्य के पूर्वजों के संबंधी हो सकते हैं और
(2) मानवाकार कपियों तथा मनुष्य के विकास के बीच में एक बड़ी खाईं है, जिसे लुप्त जीवाश्मों (fossils) की खोज कर के ही कम किया जा सकता है।
यह प्रशंसनीय है कि डार्विन के समय में मनुष्य के समान एक भी जीवाश्म उपलब्ध न होते हुए भी, उसने भूगर्भ में छिपे ऐसे अवशेषों की उपस्थिति की भविष्यवाणी की जो सत्य सिद्ध हुई। अभी तक की खोज के अनुसार होमो सेपियन्स का उद्धव 2 लाख साल पहले पूर्वी अफ्रीका का माना जाता रहा है,[1] लेकिन नई खोज के मुताबिक 3 लाख साल पहले ही होमो सेपिन्यस के उत्तर अफ्रीका में विकास के सबूत मौजूद है।[2]
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कुंदन कुमार, सहरसा: मिट्टी न केवल एक मूल्यवान राष्ट्रीय संपत्ति है, बल्कि यह एक अनमोल प्राकृतिक संसाधन भी है जो मानव सभ्यता के लिए आवश्यक है।
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- जीवन की शुरुआत मिट्टी से होती है और इसके बिना धरती पर इंसानों के अलावा अन्य जीवों का भी अस्तित्व संभव है।
- ऐसे में यदि मिट्टी का तेजी से कटाव नहीं रुका तो मानव सभ्यता के इतिहास का अंत हो सकता है।
- पृथ्वी दिवस पर एक बार फिर से मिट्टी के कटाव की चर्चा तेज हो गई है. ऐसा माना जाता है कि मिट्टी को एक इंच मिट्टी बनने में हजारों साल लगते हैं, लेकिन मानव समाज द्वारा मिट्टी के गलत इस्तेमाल के कारण मिट्टी का कटाव तेज हो गया है, जिससे मिट्टी धीरे-धीरे मृत हो जाती है।
- मिट्टी का कटाव पौधों के लिए पोषक तत्वों की कमी का कारण बन रहा है, जो पर्यावरण को दूषित कर रहा है।
- पूरे विश्व में नदी घाटी सभ्यताओं को सहारा देने वाली उपजाऊ मिट्टी अब अति-सिंचित होती जा रही है, जो चिंता का कारण बन रही है।
- कृषि वैज्ञानिक डॉ. आरसी यादव ने कहा है कि पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से रेगिस्तान का विस्तार हो रहा है।
- यदि निवारक उपाय समय पर नहीं किए गए, तो मानव सभ्यता दांव पर है।
- कोसी संभाग जैसे बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में कटाव एक समस्या बनता जा रहा है, और इस मुद्दे के समाधान के लिए कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
- इसका कृषि उत्पादकता पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है, और इससे प्राकृतिक आपदाएँ भी आने की संभावना है।भूवैज्ञानिक डॉ अशोक कुमार सिंह का कहना है कि बिना खाद, प्लास्टिक और कागज रहित काम के हम मिट्टी के कटाव को रोकने की कल्पना भी नहीं कर सकते।
- पृथ्वी की ऊपरी परत की रक्षा के लिए जो मनुष्य और पशु दोनों के लिए महत्वपूर्ण है, ऑक्सीजन छोड़ने वाले पौधों की संख्या बढ़ानी चाहिए।
- हम मनुष्यों और अन्य जीवित प्राणियों की रक्षा करना चाहते हैं ताकि वे एक सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण में रह सकें।
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