Hindi, asked by gaurinalavade, 2 months ago

मानव जब जोर लगाता है,
पत्थर पानी बन जाता है।
गुण बड़े एक से एक प्रखर,
है छिपे मानवों के भीतर,
मेहंदी में जैसे लाली हो,
वर्तिका-बीच उजियारी हो।
बत्ती जो नहीं जलाता है,
रोशनी वह नहीं पाता है। who is the writer? of this poem​

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Answered by aarunya13
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कदम मिलाकर चलना होगा बाधायें आती हैं आयें, घिरें प्रलय की घोर घटाएँ , पावों के नीचे अंगारे सिर पर बरसे यदि ज्वालाएं | निज हाथों से हँसते हँसते, आग लगाकर जलना होगा, कदम मिलाकर चलना होगा || हास्य रुदन और तूफानों में, अगर असंख्यक बलिदानों में, उद्यानों में वीरानों में अपमानों में सम्मानों में, उन्नत मस्तक उभरा सीना पीड़ाओं में पलना होगा, कदम मिलाकर चलना होगा || उजियारे में अंधकार में कल कहार में बीच धार में, घोर घृणा में पूत प्यार में क्षणिक जीत में दीर्घ हार में, जीवन के शत शत आकर्षक अरमानों को ढलना होगा | कदम मिलाकर चलना होगा || सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ प्रगति चिरंतन कैसा इति अब, सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ असफल सफल समान मनोरथ, सब कुछ देकर कुछ नहीं मांगत पावस बनकर ढलना होगा | कदम मिलाकर चलना होगा || कुछ काँटों से सज्जित जीवन

"अटल बिहारी वाजपेयी "

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