मानवा का अपमान
क्या है
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अपमानित या मर्माहत होकर व्यक्ति न केवल नई दृष्टि तथा दृष्टिकोण का विकास कर सकता है बल्कि नई दृष्टि और नये सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास विषम परिस्थितियों में ही सहजता से किया जा सकता है। हर स्थिति व्यक्ति को आत्म-विश्लेषण तथा पुनर्मूल्यांकन का अवसर प्रदान करती है। स्थिति जितनी विषम होगी, समस्या जितनी गहन होगी अथवा चोट जितनी गहरी होगी उतना ही अधिक आत्मविश्लेषण तथा पुनर्मूल्यांकन संभव हो सकेगा क्योंकि छोटी-मोटी घटना पर तो हम विचार करते ही नहीं।
निरी प्रशंसा और सम्मान से व्यक्ति अहंकारी होकर अपने उचित मार्ग या कर्तव्य-पथ से विचलित हो सकता है। प्रशंसा तो विष के समान है जिसे मात्रा औषधि के रूप में अत्यंत अल्पमात्रा में ही लेना चाहिये। अधिक मात्रा घातक होती है। विरोध, निंदा या अपमान एक कटु औषधि होते हुए भी अच्छी है क्योंकि ये रोगोपचारक है, प्रशंसा से उत्पन्न अहंकार रूपी रोग को नष्ट करने में सक्षम है। कबीर ने तभी तो कहा हैः
idk sorry u don't have points sorry