Hindi, asked by guptavaishali4p9jky1, 1 year ago

मानव की वर्तमान जीवन शैली और शहरीकरण से जुड़ी योजनाएं पक्षियों के लिए घातक हैं?पक्षियों से रहित

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Answered by Anonymous
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पतंगबाजी के शौक में अनेक अप्रिय घटनाएं हो रही हैं, जिनमें अधिकतर दोपहिया वाहन चालक व पैदल चलने वाले शिकार होते हैं। इसके साथ ही आसमान में अठखेलियां करने वाले मासूम पक्षी भी इसकी चपेट में आकर अपनी जानें गंवा रहे हैं।

जानकारों के मुताबिक पिछले 500 वर्षों में पक्षियों की 130 प्रजातियां लुप्त हो चुकी हैं। इस अध्ययन के मुताबिक ये 100 प्रजातियां भी जल्द ही लुप्त हो जाएंगी। इनके लुप्त होने की जो वजहें रिपोर्ट में बताई गई हैं उनमें प्रमुख है इन पक्षियों के आवास पर मंडराता खतरा। जंगलों और पेड़-पौधों का लगातार कटने जाना इन पक्षियों के लिए सबसे बड़ा संकट साबित हो रहा है। इनमें से बहुतेरे तो शिकार करने की मानवीय प्रवृत्ति का भी शिकार हुए हैं, लेकिन इंसानी समाज की जो चीज इनके लिए सर्वाधिक मारक साबित हुई है वह है विकास की अंधी दौड़।

इन विलुप्त होते पक्षियों को बचाने की जद्दोजहद में लगे बांबे नैचरल हिस्ट्री सोसायटी के अधिकारियों के मुताबिक तेज शहरीकरण, अंधाधुंध विकास और अधिकाधिक कीटनाशकों का इस्तेमाल इन पक्षियों के जीवन को कठिन से कठिनतर बनाते जा रहे हैं। लेकिन, खतरा पक्षियों के जीवन तक सीमित नहीं है। दूसरे वन्य जीवों के लिए भी ये चीजें संकट का पर्याय बन चुकी हैं। और तो और खुद इंसान के लिए भी ये चीजें मुसीबत का सबब बनती जा रही हैं। इन्हीं प्रवृत्तियों की उपज हैं बदलते मौसम चक्र और बढ़ते ग्लोबल वार्मिंग जैसे खतरे जो इंसानी समाज को भी लीलने की तैयारी में दिखते हैं। साफ है कि भले ताजा अध्ययन पक्षियों की 100 प्रजातियों के खतरे तक सीमित हो, समस्या का हल इसे टुकड़ों में देखते हुए नहीं निकाला जा सकता।

यह एक साझा समस्या है जिससे सभी जीव-जंतुओं का जीवन प्रभावित हो रहा है। हां, ऐसे हालात पैदा करने में सबसे ज्यादा भूमिका इंसान की रही है, इसलिए इसे हल करने की भी सबसे ज्यादा जवाबदेही उसी की बनती है।

यह एक साझा समस्या है जिससे सभी जीव-जंतुओं का जीवन प्रभावित हो रहा है। हां, ऐसे हालात पैदा करने में सबसे ज्यादा भूमिका इंसान की रही है, इसलिए इसे हल करने की भी सबसे ज्यादा जवाबदेही उसी की बनती है।


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Answered by GODARYANKAR
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Answer:वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, 1970 से 2008 के बीच दुनिया भर में जंगली जानवरों की संख्या 30 फीसदी घट गई। कुछ जगहों पर तो यह संख्या साठ प्रतिशत घटी। इस दौरान मीठे पानी में रहने वाले पक्षियों, जानवरों और मछलियों की संख्या में सत्तर फीसदी गिरावट दर्ज की गई।

विभिन्न कारणों से डॉल्फिन, बाघ और दरियाई घोड़ों की संख्या घटी। वर्ष 1980 से अब तक एशिया में बाघों की संख्या सत्तर प्रतिशत कम हो चुकी है। पक्षियों के अस्तित्व पर आया संकट तो बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है, क्योंकि वे जैव विविधता की महत्वपूर्ण कड़ी हैं।

गौरतलब है कि दुनिया में पक्षियों की लगभग 9,900 प्रजातियां ज्ञात हैं। पर आगामी सौ वर्षों में पक्षियों की लगभग 1,100 प्रजातियां विलुप्त हो सकती हैं। भारत में पक्षियों की करीब 1,250 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से करीब 85 प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर हैं । पशु-पक्षी अपने प्राकृतिक आवास में ही सुरक्षित महसूस करते हैं। पर हाल के दशकों में विभिन्न कारणों से पक्षियों का प्राकृतिक आवास उजड़ता गया है।

बढ़ते शहरीकरण और औद्योगिकीकरण की वजह से वृक्ष लगातार कम हो रहे हैं। बाग-बगीचे उजाड़कर या तो खेती की जा रही है या बहुमंजिले अपार्टमेंट बनाए जा रहे हैं। जलीय पक्षियों का प्राकृतिक आवास भी सुरक्षित नहीं है। ऐसे में किसी एक निश्चित जगह पर रहने के लिए पक्षियों में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ती जा रही है।

पक्षी मानवीय लोभ की भेंट तो चढ़ ही रहे हैं, जलवायु परिवर्तन के कारण भी इनकी संख्या लगातार कम हो रही है। कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए पक्षियों का शिकार एवं अवैध व्यापार जारी है। पक्षी विभिन्न रसायनों और जहरीले पदार्थों के प्रति अति संवेदनशील होते हैं। ऐसे पदार्थ भोजन या फिर पक्षियों की त्वचा के माध्यम से शरीर में पहुंचकर उनकी मौत का कारण बनते हैं।

डीडीटी, विभिन्न कीटनाशक और खर-पतवार खत्म करने वाले रसायन पक्षियों के लिए बेहद खतरनाक सिद्ध हो रहे हैं। खासकर मोर जैसे पक्षी तो इन्हीं वजह से काल के गाल में समा रहे हैं। पर्यावरण को स्वच्छ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला गिद्ध पशुओं को दी जाने वाली दर्दनिवारक दवा की वजह से मर रहा है। पशुओं को दी जाने वाली दर्दनिवारक दवाओं के अंश मरने के बाद भी उनके शरीर में रह जाते हैं। गिद्ध जब इन मरे हुए पशुओं को खाते हैं, तो यह दवा गिद्धों के शरीर में पहुंचकर उनकी मौत का कारण बनती है।

कभी हमारे घर-आंगन में दिखने वाली गौरैया आजकल दिखाई नहीं देती। भोजन की कमी होने, घोंसलों के लिए उचित जगह न मिलने तथा माइक्रोवेव प्रदूषण जैसे कारण इनकी घटती संख्या के लिए जिम्मेदार हैं। शुरुआती पंद्रह दिनों में गौरैया के बच्चों का भोजन कीट-पतंग होते हैं। पर आजकल हमारे बगीचों में विदेशी पौधे ज्यादा उगाते हैं, जो कीट-पतंगों को आकर्षित नहीं कर पाते।

गौरैये के अलावा तोते पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। दुनिया में तोते की लगभग 330 प्रजातियां ज्ञात हैं। पर अगले सौ वर्षों में इनमें से एक तिहाई प्रजातियों के विलुप्त होने की आशंका है। भारत में और जिन पक्षियों के अस्तित्व पर खतरा है, वे हैं ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, गुलाबी सिर वाली बतख, हिमालयन बटेर, साइबेरियाई सारस, बंगाल फ्लेरिकन, उल्लू आदि।

दरअसल हमारे यहां बड़े जीवों के संरक्षण पर तो ध्यान दिया जाता है, पर पक्षियों के संरक्षण पर उतना नहीं। वृक्षारोपण, जैविक खेती को बढ़ाकर तथा माइक्रोवेव प्रदूषण पर अंकुश लगाकर पक्षियों को विलुप्त होने से बचाया जा सकता है। अब भी यदि हम जैव विविधता को बचाने का सामूहिक प्रयास न करें, तो बहुत देर हो जाएगी।

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