मानव कब दानव से भी दुर्दान्त, पशु से भी
बर्बर और पत्थर से भी कठोर करुणा के
लिए निरवकाश हृदय वाला हो जायेगा, नहीं
जाना जा सकता। अतीत सुखों के लिए सोच
क्यों, अनागत भविष्य के लिए भय क्यों और
वर्तमान को मै अपने अनुकूल बना ही लूँगा
फिर चिन्ता किस बात् की ?
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I didn't know answer but can you follow mine it's urgent please
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