मानव ने कृषि का आरंभ किस प्रकार किया? इसने सामाजिक संरचना को किस प्रकार प्रभावित किया?
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मानव में कृषि का विकास कब आरंभ किया इस बारे में अभी तक कोई स्पष्ट एवं सटीक मत प्रचलित नही है। अनेक देशों के इतिहास में प्राचीनकाल में कृषि किये जाने संबंधी विवरण मिलता है। पुरातत्व विभाग द्वारा की जाने वाली अनेक खुदाई में अनेक प्राचीन सभ्यताओं के जो अवशेष प्राप्त हुए उनमें कृषि से संबंधित औजार भी प्राप्त हुये है, जिनसे पता चलता है मानव ने खेती करना काफी पहले सीख लिया था।
आदिम काल के मानव को जब कृषि का ज्ञान नही हुआ था तो वो पशुओं के शिकार द्वारा ही अपना भरण-पोषण करता था, अर्थात माँस भक्षण ही उसका आहार था। कालांतर में मानव अग्नि से परिचित हुआ और उसने माँस को पकाना शुरु कर दिया। उसमें बुद्धि का विकास होता गया।
इसी बुद्धि विकास के क्रम में वो बीज से परिचित हुआ और उसने देखा कि बीच के जमीन में गिरने पर कुछ दिनों में उससे पौधा उग रहा है। ये वो समय था जब मानव में बुद्धि का स्तर बढ़ रहा था उसने सोचना समझना शुरु कर दिया था। बीज द्वारा पौधे उगने की प्रक्रिया देखकर उसके मन में कृषि का विचार आया। धीरे-धीरे उसने कृषि करना सीख लिया।
आदिम काल का मानव मूल स्वभाव से घुमंतु प्रवृत्ति का था। अपने शिकार की तलाश में वह पशुओं की भांति इधर-उधर भटकता रहता था और एक जगह स्थिर होकर नही रहता था। जब मानव कृषि के संपर्क में आया तो उसकी घुमंतु प्रवृत्ति पर अंकुश लग गया और वो एक जगह स्थिर होकर रहने लगा। क्योंकि कृषि करने के लिये एक जगह स्थिर रहने की आवश्यकता थी। मानव के स्वभाव के इस बदलाव ने उसकी सामाजिक संरचना को भी प्रभावित किया और वो समूह के रूप में बस्तियां आदि बनाकर एक जगह स्थिर होकर रहने लगा। इस कारण उसमें सामाजिक भावना का विकास हुआ और वो असभ्य आदिम मानव से सभ्य सामाजिक प्राणी बनने की और अग्रसर होता गया। अतः कृषि के विकास ने मानव के सामाजिक स्वरूप को बहुत बदला है।