मानव ने प्रकृति के स्वरूप में क्य अंतर खड़ा किया है?
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प्रकृति मानव की सहचारी है। प्रकृति स्वभावतः संतुलित पर्यावरण के द्वारा मानव को स्वस्थ जीवन प्रदान करती है। हमारे ऋषि-मुनि प्रकृति की सुरक्षा और विकास के लिए प्रतिबद्ध थे। यज्ञ द्वारा वायु प्रदूषण को समाप्त करके पर्यावरण को शुद्ध किए जाने की वैज्ञानिक विधि से विज्ञ थे। उन्हें यह भी ज्ञात था कि प्रकृति, स्वाभाविक रूप से जो कुछ अतिरिक्त या अपच है, उसे बाहर करके अपने आप को संतुलित कर लेती है। ज्वालामुखी द्वारा यह धरती हमें जो कुछ भी प्रदान करती है, उसी के उपभोग के हम अधिकारी होते हैं।
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मनुष्य ने पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को बदल दिया है और अपनी सभी आवश्यकताओं के अनुरूप और समायोजित करने के लिए पर्यावरण की नींव रखी है
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