“ मानव पर्यावरण को प्रभावित करते हैं तथा उससे प्रभावित होते हैं “ I इस कथन की व्याख्या उदाहरणों की सहायता से कीजिए I
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"मानव अपने जीवन की आवश्यकताएं की पूर्ति के लिए एवं अपने जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए अनेक तरह के प्रयत्न करते हैं। उन प्रयत्नो में वह पर्यावरण पर बहुत बड़ा प्रभाव डालते हैं। उदाहरण के लिए जब मानव अपने लिए घर का निर्माण करता है तो वह पर्यावरण के किसी ना किसी स्वरूप को बिगाड़ता ही है तभी उसके घर का निर्माण होता है। इस प्रक्रिया में पर्यावरण में भूमि की क्षति होती है। अपने घर में अनेक तरह के यंत्र जैसे कि फ्रिज, टीवी, एसी आदि का उपयोग करता है और इन यंत्रों से निकलने वाली गैस व हानिकारक द्रव्य पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं, वायु को दूषित करते हैं, पानी को दूषित करते हैं। इस प्रकार मनुष्य पर्यावरण की वायु एवं पानी को अपने कार्यों द्वारा नुकसान ही पहुंचाता है। मनुष्य अनेक तरह की प्लास्टिक की वस्तुओं का उपयोग करता है जो कि पर्यावरण के लिये बहुत ही हानिकारक है। मनुष्य अपने कल-कारखानों का गंदा जल व केमिकल आदि नदियों में प्रवाहित कर देता है जिसके कारण नदियां प्रदूषित होती है। मनुष्य द्वारा उपयोग किए जाने वाले वाहन वायु को प्रदूषित करते हैं एवं मनुष्य के द्वारा उपयोग किए जाने वाले ध्वनि उत्पन्न करने वाले यंत्र ध्वनि प्रदूषण फैलाते हैं। इस प्रकार देखते हैं कि मनुष्य द्वारा पर्यावरण को अनेक तरह से नुकसान पहुंचाया जाता है और वो पर्यावरण पर एक बहुत बड़ा प्रभाव डालता है।
मानव पर पर्यावरण के प्रभाव के तीन बिंदु है।
(1) प्रत्यक्षण पर पर्यावरणीय प्रभाव- पर्यावरण मानव के प्रत्यक्षण को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए अफ्रीका की एक जनजाति गोल झोपड़ियों में रहती है जिसमें कोणीय दीवारें नहीं होती है। ऐसा एक ज्यामितीय भ्रम के कारण किया जाता है। शहरों में रहने वाले लोगों के घरों में कोणीय दीवारें होती हैं।
(2) संवेंगों पर पर्यावरणीय प्रभाव- संवेग की दृष्टि से, भावनाओं की दृष्टि से पर्यावरण मनुष्य पर सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों तरह से प्रभाव डालता है। एक ताजा खिला हुआ फूल, किसी पर्वत की ऊंची शांत चोटी, कल-कल करती बहती हुई नदी, एक सुंदर बगीचा, उफान खाती लहरों वाला समुद्र आदि यह प्राकृतिक गतिविधियां मनुष्य के अंदर एक प्रफुल्लता एवं प्रसन्नता भर देती हैं । उसे शांति और सुकून का अनुभव होता है।
इसके विपरीत प्राकृतिक विपदायें जैसे कि भूकंप, बाढ़, आंधी, तूफान, बहुत ठंड, बहुत गरमी या बहुत बारिश आदि मनुष्य के अंदर एक तरह का अवसाद भर देती है, उसे दुख के सागर में डुबो देती हैं। मनुष्य के अंदर यह भाव उत्पन्न होता है कि उसके नियंत्रण में कुछ भी नहीं है।
(3) व्यवसाय, जीवनशैली तथा अभिवृत्तियों पर पारिस्थितिक प्रभाव-किसी क्षेत्र का प्राकृतिक पर्यावरण व उसकी संरचना क्षेत्र के निवासियों के जीवनयापन के स्वरूप को निर्धारित करती है कि उनकी आजीविका कैसी होगी। उदाहरण के लिए उपजाऊ मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले लोग कृषि व्यवसाय को अपनाते हैं । रेगिस्तान, वनों व पहाड़ों पर रहने वाले लोग शिकार, संग्रह आदि पर निर्भर होते हैं। जबकि उन क्षेत्रों में रहने वाले लोग जहां की भूमि उपजाऊ नहीं है उद्योगों पर आश्रित होते हैं। इस प्रकार मनुष्य के क्षेत्र के पर्यावरण की संरचना उसकी जीवन को प्रभावित करती है।"