मानव सेवा के लिए सर्वस्व न्योछावर करने वाले तीन परोपकारी मनुष्यों की महान कार्यों का उल्लेख करो मनुष्यता पाठ के आधार पर बताइए
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ईश्वर ने मानव को संवेदनशील हृदय दिया है, जो दुख में दुखी और सुख में खुशी महसूस करता है। किन्तु आज मनुष्य स्वयं के वशीभूत होकर दूसरे के दुख को समझ नहीं पा रहा है। सच्चा परोपकारी वही है, जो दूसरों के दुखों से दुखी होकर तुरंत सहायता के लिए तत्पर हो जाता है। यह तभी संभव है, जब हम परिवार में बच्चों को संस्कारवान बनाने के लिए ऐसा वातावरण दें, जो व्यवहारिक हो।
स्वामी विवेकानंद, शहीद भगत ¨सह, नेता जी सुभाष चंद्र बोस, अबुल कलाम आजाद को संस्कार परिवार से मिले थे। इनके उपकारों का ऋण क्या कभी देश चुका पाएगा? माता-पिता का कर्तव्य है कि वह अपनी संतान को चरित्रवान बनाए और उनमें नैतिक गुणों का समावेश करें। आज पढ़े-लिखे नौजवान अपनी मस्ती में मस्त रहते हैं, वे भौतिक सुख जुटाने में लगे हुए हैं। उनके समक्ष कितनी ही दयनीय स्थिति में कोई पड़ा हो, उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। अगर हमारा युवा वर्ग संवेदनशील हो जाए और दूसरों की सहायता के लिए तत्पर हो जाए तो समाज में फैली अपरोपकार की भावना समाप्त हो जाएगी।
यदि हम परोपकार की प्रवृति अपनाएं तो विश्व में समस्त मानव जाति की सेवा कर सकते हैं। यह कार्य करने पर हमें जो सुख मिलेगा, वह अलौकिक होगा। कवि श्रीनाथ जी ने मानव को संबोधित करते हुए लिखा है:
मछली से सीखो स्वदेश के लिए तड़पकर मरना।
पतझड़ के पेड़ों से सीखो, दुख में धीरज धरना।।
जलधारा से सीखो आगे, जीवन पथ पर बढ़ना।
और धुएं से सीखो, हरदम ऊंचे पर ही चढ़ना।।
आज हमारे देश के जवान बिना किसी स्वार्थ के परोपकार की भावना को मन में धारण किए हुए हंसते-हंसते हुए अपने प्राणों की बलि दे देते हैं। वह सीमाओं पर होते हैं और हम अपने घरों में सुरक्षित सोते हैं। परोपकारी व्यक्ति यदि बदले में कोई इच्छा नहीं रखता तो वह उपकार प्राप्त करने वाले के लिए भगवान के समान होता है।
राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त ने कहा भी है:- 'मनुष्य वहीं, जो मनुष्य के लिए मरे'। परहित के कारण ही गांधी जी ने गोली खाई, ईसा सूली पर चढ़े, भगत ¨सह और उनके साथियों ने फांसी को गले लगाया। सुकरात ने जहर पिया। मगर आज जब हम आतंकवादियों को देखते हैं तो लगता है उनके हृदय में दया नाम की कोई भावना नहीं है। नरसंहार को रोकने के लिए सभी को मंथन करना होगा कि कैसे इन आतंकवादियों में कोमल भावनाएं जगाई जाएं। फिर मैं यही कहूंगी कि परिवार ही वह प्राथमिक पाठशाला है, जहां कोमल हृदयों में नैतिक गुणों का समावेश किया जा सकता है। बाल मस्तिष्क में कहानियों के माध्यम से, चित्रों के माध्यम से और माता-पिता द्वारा बच्चों को साथ लेकर परोपकार के कार्य किए जाएं तो उनके हृदय कोमल रहेंगे और वे परोपकार को अपनाएंगे, भविष्य में आतंकवादी नहीं बनेंगे।
रहीम जी ने ठीक ही कहा है-
रहिमन यों सुख होत है, उपकारी के संग।
बांटन वारे को लगे, ज्यों मेहंदी के रंग।
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Explईश्वर ने मानव को संवेदनशील हृदय दिया है, जो दुख में दुखी और सुख में खुशी महसूस करता है। किन्तु आज मनुष्य स्वयं के वशीभूत होकर दूसरे के दुख को समझ नहीं पा रहा है। सच्चा परोपकारी वही है, जो दूसरों के दुखों से दुखी होकर तुरंत सहायता के लिए तत्पर हो जाता है। यह तभी संभव है, जब हम परिवार में बच्चों को संस्कारवान बनाने के लिए ऐसा वातावरण दें, जो व्यवहारिक हो।
स्वामी विवेकानंद, शहीद भगत ¨सह, नेता जी सुभाष चंद्र बोस, अबुल कलाम आजाद को संस्कार परिवार से मिले थे। इनके उपकारों का ऋण क्या कभी देश चुका पाएगा? माता-पिता का कर्तव्य है कि वह अपनी संतान को चरित्रवान बनाए और उनमें नैतिक गुणों का समावेश करें। आज पढ़े-लिखे नौजवान अपनी मस्ती में मस्त रहते हैं, वे भौतिक सुख जुटाने में लगे हुए हैं। उनके समक्ष कितनी ही दयनीय स्थिति में कोई पड़ा हो, उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। अगर हमारा युवा वर्ग संवेदनशील हो जाए और दूसरों की सहायता के लिए तत्पर हो जाए तो समाज में फैली अपरोपकार की भावना समाप्त हो जाएगी।
यदि हम परोपकार की प्रवृति अपनाएं तो विश्व में समस्त मानव जाति की सेवा कर सकते हैं। यह कार्य करने पर हमें जो सुख मिलेगा, वह अलौकिक होगा। कवि श्रीनाथ जी ने मानव को संबोधित करते हुए लिखा है:
मछली से सीखो स्वदेश के लिए तड़पकर मरना।
पतझड़ के पेड़ों से सीखो, दुख में धीरज धरना।।
जलधारा से सीखो आगे, जीवन पथ पर बढ़ना।
और धुएं से सीखो, हरदम ऊंचे पर ही चढ़ना।।
आज हमारे देश के जवान बिना किसी स्वार्थ के परोपकार की भावना को मन में धारण किए हुए हंसते-हंसते हुए अपने प्राणों की बलि दे देते हैं। वह सीमाओं पर होते हैं और हम अपने घरों में सुरक्षित सोते हैं। परोपकारी व्यक्ति यदि बदले में कोई इच्छा नहीं रखता तो वह उपकार प्राप्त करने वाले के लिए भगवान के समान होता है।
राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त ने कहा भी है:- 'मनुष्य वहीं, जो मनुष्य के लिए मरे'। परहित के कारण ही गांधी जी ने गोली खाई, ईसा सूली पर चढ़े, भगत ¨सह और उनके साथियों ने फांसी को गले लगाया। सुकरात ने जहर पिया। मगर आज जब हम आतंकवादियों को देखते हैं तो लगता है उनके हृदय में दया नाम की कोई भावना नहीं है। नरसंहार को रोकने के लिए सभी को मंथन करना होगा कि कैसे इन आतंकवादियों में कोमल भावनाएं जगाई जाएं। फिर मैं यही कहूंगी कि परिवार ही वह प्राथमिक पाठशाला है, जहां कोमल हृदयों में नैतिक गुणों का समावेश किया जा सकता है। बाल मस्तिष्क में कहानियों के माध्यम से, चित्रों के माध्यम से और माता-पिता द्वारा बच्चों को साथ लेकर परोपकार के कार्य किए जाएं तो उनके हृदय कोमल रहेंगे और वे परोपकार को अपनाएंगे, भविष्य में आतंकवादी नहीं बनेंगे।
रहीम जी ने ठीक ही कहा है-
रहिमन यों सुख होत है, उपकारी के संग।
बांटन वारे को लगे, ज्यों मेहंदी के रंग।
THANK YOU
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