मानव विकास के विभिन्न संकेत को का उल्लेख कीजिए
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मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) [जीवन प्रत्याशा], [शिक्षा], और [प्रति व्यक्ति आय] संकेतकों का एक समग्र आंकड़ा है, जो मानव विकास के चार स्तरों पर देशों को श्रेणीगत करने में उपयोग किया जाता है। जिस देश की जीवन प्रत्याशा, शिक्षा स्तर एवं जीडीपी प्रति व्यक्ति अधिक होती है, उसे उच्च श्रेणी प्राप्त होती हैं।
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United Nations Development Programme) द्वारा मानव विकास सूचकांक (Human development Index- HDI) 2019 जारी किया गया।
प्रमुख बिंदु:
सूचकांक के अनुसार, 189 देशों की सूची में भारत 129वें स्थान पर है।
भारत की स्थिति में एक स्थान का सुधार हुआ है, ग़ौरतलब है कि वर्ष 2018 में भारत 130वें स्थान पर था।
इस सूचकांक की वरीयता सूची में नार्वे, स्विट्ज़रलैंड, ऑस्ट्रेलिया, आयरलैंड और जर्मनी शीर्ष स्थानों पर हैं।
सूचकांक में सबसे निचले पायदान पर क्रमशः नाइजर, दक्षिण अफ्रीकी गणराज्य, दक्षिण सूडान, चाड और बुरुंडी हैं।
भारत के पड़ोसी देशों में श्रीलंका 71वें स्थान पर और चीन 85वें स्थान पर हैं।
वहीं भूटान 134वें, बांग्लादेश 135वें, म्याँमार 145वें, नेपाल 147वें, पाकिस्तान 152वें और अफगानिस्तान 170वें स्थान पर हैं।
दक्षिण एशिया वर्ष 1990 से 2018 के बीच विश्व में सबसे तेज़ गति से विकास करने वाला क्षेत्र है।
इस अवधि में मानव विकास सूचकांक के संदर्भ में दक्षिण एशिया में 46% की वृद्धि दर्ज की गई।
वहीँ पूर्व एशिया और प्रशांत क्षेत्र में 43% की वृद्धि हुई।
भारत के HDI वैल्यू में 50% तक की वृद्धि हुई है. वर्ष 1990 में जहाँ यह मूल्य .431 था वहीँ वर्ष 2018 में .647 है।
रिपोर्ट के अनुसार, विश्व भर में समूह आधारित असमानता विद्यमान है, यह असमानता विशेषकर महिलाओं को प्रभावित करती है।
रिपोर्ट के अनुसार, लैंगिक असमानता सूचकांक में 162 देशों की सूची में भारत 122वें स्थान पर है, वहीं पड़ोसी देश चीन (39) श्रीलंका (86) भूटान (99) और म्यांमार (106) भारत से बेहतर स्थिति में हैं।
इस सूची में नॉर्वे, स्विट्ज़रलैंड और आयरलैंड शीर्ष पर हैं।
यह सूचकांक महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य, सशक्तीकरण, आर्थिक सक्रियता पर आधारित है।
रिपोर्ट के अनुसार, भारत में जन्म के समय पुरुषों की जीवन प्रत्याशा जहाँ 68.2 वर्ष थी वहीं महिलाओं की जीवन प्रत्याशा 70.7 वर्ष दर्ज की गई है।
रिपोर्ट के अंतर्गत, भारत में स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्षों की संख्या 12.3 वर्ष आँकी गई है।
भारत में स्कूली शिक्षा के औसत वर्षों की संख्या 6.5वर्ष बताई गई है।
मानव विकास सूचकांक
(Human Development Index) :
मानव विकास सूचकांक की अवधारणा का विकास पाकिस्तानी अर्थशास्त्री महबूब उल हक द्वारा किया गया।
पहला मानव विकास सूचकांक वर्ष 1990 में जारी किया गया।
इसको प्रतिवर्ष संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा जारी किया जाता है।
सूचकांक की गणना 3 प्रमुख संकेतकों- जीवन प्रत्याशा, स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष, शिक्षा के औसत वर्ष और प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय के
अंतर्गत की जाती है।
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Explanation:
जिसमें जीवन प्रत्याशा, शिक्षा या ज्ञान की पहुँच और आय या जीवन स्तर के संकेतकों को शामिल किया जाता है, जीवन की गुणवत्ता का स्तर तथा इसमें परिवर्तन से जुड़े महत्त्वपूर्ण आँकड़े प्रस्तुत करता है। यह सूचकांक भारत और पाकिस्तान के दो प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों ‘महबूब उल हक’ (पाकिस्तान ) और अमर्त्य सेन (भारत) की देन है। शुरुआत में इसे जीडीपी के विकल्प के रूप में लॉन्च किया गया था, क्योंकि यह वृद्धि प्रक्रिया मानव विकास की केंद्रीयता पर ज़ोर देती है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत अपनी अर्थव्यवस्था में कई गुना वृद्धि करने में सफल रहा है परंतु HDI के संदर्भ में भारत का प्रदर्शन बहुत अधिक प्रभावी नहीं रहा है। पिछले तीन दशकों का HDI डेटा देखकर पता चलता है कि HDI स्कोर के संदर्भ में भारत की औसत वार्षिक वृद्धि दर मात्र 1.42% ही रही है।
ऐसे में यदि भारत को एक महाशक्ति बनने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करना है तो इसे अपनी आबादी में कमज़ोर वर्गों के सामाजिक और आर्थिक बोझ को कम करने पर विशेष ध्यान देना होगा।
भारत द्वारा मानव विकास के क्षेत्र में सुधार: संयुक्त राष्ट्र मानव विकास कार्यक्रम की मानव विकास रिपोर्ट-2019 के अनुसार, वर्ष 2005 से भारत की प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय दोगुने से अधिक हो गई है। साथ ही वर्ष 2005-06 के बाद के दशक में बहुआयामी गरीबों की श्रेणी में आने वाले लोगों की संख्या में 271 मिलियन से अधिक की गिरावट आई है। इसके अतिरिक्त मानव विकास के ‘बुनियादी क्षेत्रों’ में व्याप्त असमानताओं में भी कमी आई है। उदाहरण के लिये ऐतिहासिक रूप से हाशिये पर रहने वाले समूह शिक्षा प्राप्ति के मामले में बाकी आबादी की बराबरी कर रहे हैं। HDI में भारत के खराब प्रदर्शन का कारण:
वर्ष 2019 के मानव विकास सूचकांक में भारत 6,681 अमेरिकी डॉलर की प्रति व्यक्ति आय के साथ 131वें स्थान पर रहा, जो वर्ष 2018 (130वें स्थान) की तुलना में भारत को एक स्थान पीछे ले जाता है। सामाजिक और आर्थिक असमानता के नकारात्मक प्रभाव का बोझ भारत के इस खराब प्रदर्शन का सबसे बड़ा कारण रहा है, जबकि अर्थव्यवस्था के आकार के मामले में भारत विश्व की शीर्ष 6 अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है। इसके अतिरिक्त भारत के इस खराब प्रदर्शन के अन्य प्रमुख कारणों में से कुछ निम्नलिखित हैं:
आय असमानता में वृद्धि: आय के मामले में बढ़ती असमानता मानव विकास के अन्य मानकों में खराब प्रदर्शन का कारण बनती है। उच्च आय असमानता वाले देशों में पीढ़ीगत आय गतिशीलता में भी कमी देखी गई है। इससे प्रभावित परिवारों में यह असमानता बच्चों में जन्म से ही जुड़ जाती है और यह उनके लिये गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और अवसरों तक पहुँच को सीमित करती है।इसके अलावा देश में आय असमानता में वृद्धि की लहर देखी जा रही है। वर्ष 2000 और वर्ष 2018 के बीच देश की निचली 40% आबादी (आर्थिक दृष्टि से) की आय में हुई वृद्धि मात्र 58%थी जो कि देश की पूरी आबादी की औसत आय वृद्धि (122%) से काफी कम है।लैंगिक असमानता: आँकड़ों के अनुसार, भारत में महिलाओं की प्रति व्यक्ति आय पुरुषों की तुलना में मात्र 21.8% ही थी, जबकि विश्व के अन्य विकसित देशों में यह दोगुने से अधिक (लगभग 49%) थी।भारत में कामकाजी आयु वर्ग की केवल 20.5% महिलाएँ श्रमिक वर्ग में शामिल थीं, जो कि एक निराशाजनक महिला श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) की ओर संकेत करता है। प्रभाव: इन कारकों के संचयी प्रभाव का प्रसार कई पीढ़ियों तक देखने को मिलता है। यह पीढ़ीगत दुश्चक्र ही समाज के निचले वर्ग के लोगों के लिये अवसरों को सीमित करता है।आगे की राह: उचित आय वितरण: यद्यपि आर्थिक संसाधनों का आकार मानव विकास को प्रभावित करने वाला एक महत्त्वपूर्ण कारक है परंतु इन संसाधनों का वितरण और आवंटन भी मानव विकास के स्तर को निर्धारित करने में एक प्रमुख भूमिका निभाता है।कई वैश्विक अध्ययनों से पता चलता है कि एक मध्यम सामाजिक व्यय के चलते भी अधिक प्रभावी आय वितरण के साथ उच्च विकास (High Growth) के माध्यम से मानव विकास को बढ़ाने में सहायता मिल सकती है।उदाहरण के लिये दक्षिण कोरिया और ताइवान ने प्रारंभिक भूमि सुधारों के माध्यम से आय वितरण में सुधार किया।सामाजिक अवसंरचना में निवेश: शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल के सार्वभौमिकीकरण के माध्यम से वंचित वर्गों को गरीबी के दुश्चक्र से बाहर निकाला जा सकता है।लोगों के लिये जीवन की गुणवत्ता को बनाए रखना और इसमें निरंतर सुधार करना, नवीन चुनौतियों (जैसे शहरीकरण, आवास की कमी, बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच आदि) से निपटने के लिये बनाई गई नीतियों पर निर्भर करेगी। वित्तीय ज़रूरतों का प्रबंधन: राजस्व सृजन के नए स्रोतों के निर्माण के पारंपरिक दृष्टिकोण को व्यवस्थित करना। सब्सिडी के तर्कसंगत लक्ष्यीकरण, सामाजिक क्षेत्र के विकास हेतु निर्धारित राजस्व का विवेकपूर्ण उपयोग आदि जैसे कदम HDI में सुधार के लिये आवश्यक वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं। सुशासन : परिणामी बजट, सामाजिक ऑडिट और सहभागी लोकतंत्र आदि नवीन तरीकों के माध्यम से सामाजिक क्षेत्र के विकास में संलग्न
भारत के मानव विकास सूचकांक में व्यापक सुधार किया जा सकता है, परंतु यह तभी संभव होगा जब राजनीतिक रूप से प्रतिबद्ध सरकार द्वारा ऐसी समावेशी नीतियों को लागू किया जाए जो सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण को मज़बूत करने के साथ ही लैंगिक भेदभाव को समाप्त करते हुए एक अधिक समतावादी व्यवस्था की ओर ले जाती हैं।
अभ्यास प्रश्न: एक बेहतर समतावादी व्यवस्था की स्थापना के लिये सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण को मज़बूत करने के साथ ही लैंगिक भेदभाव को समाप्त करना बहुत आवश्यक है। टिप्पणी कीजिये।
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