मानवीय करुणा की दिव्य चमक पाठ के आधार पर बताइए कि फादर बुल्के सन्यासी होते हुए भी पारंपरिक रूप से सन्यासी नहीं थे
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फादर बुल्के अपनी वेशभूषा और संकल्प से सन्यासी थे परंतु वह मन से समय से नहीं थे वह विशेष संबंध बनाकर नहीं रखते थे परंतु फादर बुल्के जिससे रिश्ता बना लेते थे उसे कभी नहीं तोड़ते थे वर्षों बाद मिलने पर भी उनसे अपन तत्व की महक अनुभव की जा सकती थी जब वह दिल्ली जाते थे तो अपने जानने वालों को अवश्य मिलकर आते थे
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